Tuesday, 23 July 2013

फुर्सत तो मिले

फुर्सत तो मिले
एक बार ज़रा
न जाने कितने काम करने हैं
कितने ख्याल पकाने हैं
कितने ख़्वाबों में रंग भरने हैं

हाँ, छुट गयी थी बहुत पहले
एक ग़ज़ल आधी अधूरी-सी
कुछ कहि,कुछ अनकही
कुछ अनसुलझी पहेली-सी

सिरे उसके अब पकड़
कुछ समेट कर धरने हैं

हर बार का बहाना कि बस अभी
फुर्सत अभी ज़रा सी  मिलती है
इस 'अभी' के इंतज़ार की
घड़ी, न जाने कब तक बहलती है
हम सोचते रहते कि बस
अब हिसाब करते हैं

फुर्सत तो मिले ....एक बार ज़रा

9 comments:

  1. फुर्सत तो मिले जरा
    बहुत खुबसूरत रचना !!

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  2. फुर्सत जो है की मिलती नहीं ,बिलकुल सही कहा ये अभी कभी आती नहीं

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  3. कई बार उम्र लग जाती है फुरसत के कुछ पल नहीं मिलते ...
    गहरा एहसास लिए पंक्तियाँ ....

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  4. बस यही शिक़ायत है... वक़्त से...सबसे...खुद से...
    कि... फ़ुर्सत अब मिलती नहीं.... :((

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  5. सुन्दर रचना... फुर्सत तो मिले !

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  6. बहुत सुन्दर रचना

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  7. फुर्सत मिला नहीं करती अब ज़माने में ..........

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  8. वाकई ..
    कई काम बाकी हैं !

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