फुर्सत तो मिले
एक बार ज़रा
न जाने कितने काम करने हैं
कितने ख्याल पकाने हैं
कितने ख़्वाबों में रंग भरने हैं
हाँ, छुट गयी थी बहुत पहले
एक ग़ज़ल आधी अधूरी-सी
कुछ कहि,कुछ अनकही
कुछ अनसुलझी पहेली-सी
सिरे उसके अब पकड़
कुछ समेट कर धरने हैं
हर बार का बहाना कि बस अभी
फुर्सत अभी ज़रा सी मिलती है
इस 'अभी' के इंतज़ार की
घड़ी, न जाने कब तक बहलती है
हम सोचते रहते कि बस
अब हिसाब करते हैं
फुर्सत तो मिले ....एक बार ज़रा
एक बार ज़रा
न जाने कितने काम करने हैं
कितने ख्याल पकाने हैं
कितने ख़्वाबों में रंग भरने हैं
हाँ, छुट गयी थी बहुत पहले
एक ग़ज़ल आधी अधूरी-सी
कुछ कहि,कुछ अनकही
कुछ अनसुलझी पहेली-सी
सिरे उसके अब पकड़
कुछ समेट कर धरने हैं
हर बार का बहाना कि बस अभी
फुर्सत अभी ज़रा सी मिलती है
इस 'अभी' के इंतज़ार की
घड़ी, न जाने कब तक बहलती है
हम सोचते रहते कि बस
अब हिसाब करते हैं
फुर्सत तो मिले ....एक बार ज़रा
फुर्सत तो मिले जरा
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना !!
फुर्सत जो है की मिलती नहीं ,बिलकुल सही कहा ये अभी कभी आती नहीं
ReplyDeleteकई बार उम्र लग जाती है फुरसत के कुछ पल नहीं मिलते ...
ReplyDeleteगहरा एहसास लिए पंक्तियाँ ....
बस यही शिक़ायत है... वक़्त से...सबसे...खुद से...
ReplyDeleteकि... फ़ुर्सत अब मिलती नहीं.... :((
सुन्दर रचना... फुर्सत तो मिले !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteफुर्सत मिला नहीं करती अब ज़माने में ..........
ReplyDeleteसुन्दर काव्य रचना।।
ReplyDeleteनये लेख : जन्म दिवस : मुकेश
आखिर किसने कराया कुतुबमीनार का निर्माण?
वाकई ..
ReplyDeleteकई काम बाकी हैं !