Wednesday 19 March 2014
Saturday 15 March 2014
निमित्त और नियंता
नियंता
बनना चाहता है क्यों
जबकि ज्ञात तुझे भी
है यह सत्य
मात्र निमित्त है तू
नियंता तो है कोई और
फिर क्यों जीवन रथ की लगाम
थामने की कोशिश
बार-बार
पगले! नहीं जानता तू
नहीं सधेंगे तुझसे
ये भाग्य अश्व
अपनी गति से चलेंगे
अपनी दिशा में मुड़ेंगे
हाँ! इन अश्वों की वल्गा
थामे है वो नियंता
तू पार्थ
तू मात्र कर्म का अधिकारी
ताज भाग्य का मोह
अब खींच कर्म प्रत्यंचा भ्रुवों तक
रख लक्ष्य केंद्र में
मस्तक पर छलकें स्वेद हीरक
तब जगमग होगा भाग्य स्वतः
कर्म निर्मित रेखाएं देख
बदलेगा भाग्य तुम्हारा
स्वयं नियंता
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