नियंता
बनना चाहता है क्यों
जबकि ज्ञात तुझे भी
है यह सत्य
मात्र निमित्त है तू
नियंता तो है कोई और
फिर क्यों जीवन रथ की लगाम
थामने की कोशिश
बार-बार
पगले! नहीं जानता तू
नहीं सधेंगे तुझसे
ये भाग्य अश्व
अपनी गति से चलेंगे
अपनी दिशा में मुड़ेंगे
हाँ! इन अश्वों की वल्गा
थामे है वो नियंता
तू पार्थ
तू मात्र कर्म का अधिकारी
ताज भाग्य का मोह
अब खींच कर्म प्रत्यंचा भ्रुवों तक
रख लक्ष्य केंद्र में
मस्तक पर छलकें स्वेद हीरक
तब जगमग होगा भाग्य स्वतः
कर्म निर्मित रेखाएं देख
बदलेगा भाग्य तुम्हारा
स्वयं नियंता
आपको भी होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
ReplyDeleteआपको भी संजय जी !
Deleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनायें !
धन्यवाद सुशील जी , आपको होली की शुभकामनायें!
Deleteउम्दा प्रस्तुति...!
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनायें । शालिनी जी ....
RECENT POST - फिर से होली आई.
ये भाग्य अश्व
ReplyDeleteअपनी गति से चलेंगे
अपनी दिशा में मुड़ेंगे
हाँ! इन अश्वों की बल्गा
थामे है वो नियंता
तू पार्थ
तू मात्र कर्म का अधिकारी
बहुत ही सुन्दर कविता है. आपकी लिखने की शैली बहुत ही अच्छी है.
ये भाग्य अश्व
ReplyDeleteअपनी गति से चलेंगे
अपनी दिशा में मुड़ेंगे
हाँ! इन अश्वों की बल्गा
थामे है वो नियंता
तू पार्थ
तू मात्र कर्म का अधिकारी
बहुत ही सुन्दर कविता है. आपकी लिखने की शैली बहुत ही अच्छी है.
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन संदीप उन्नीकृष्णन अमर रहे - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
भाग्य का मोह हम कहाँ तज पाते हैं....
ReplyDeleteगहन रचना....
अनु
कर्म ही सब कुछ है ... भाग्य बदलने वाला भी वही है ...
ReplyDeleteप्रभावी अभिव्यक्ति ... होली कि हार्दिक बधाई ...
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,होली की हार्दिक मंगलकामनाएँ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteरंगों के पावन पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।