Sunday 11 October 2015

सोलह सिंगार ( कुण्डलिया)


कजरा गजरा डाल कर, कर सोलह सिंगार।

गोरी बैठी सेज पर, करने को अभिसार।।


करने को अभिसार, राह पर पलक बिछाए।


पल-पल बीते पहर, बिना पलकें झपकाए।।


किस सौतन का आज, बना जादूगर गजरा।


तडपत बीती रैन, बहा नयनन से कजरा।|

कजरा नैनन से बहा ( कुण्डलिया)

कजरा नैनन से बहा, कारे पड़े कपोल।

निर्मोही पर प्रीत का, जान न पाया मोल।।

जान न पाया मोल, रहा परदेसी होकर।

गये विरह में वर्ष, रोय निज चैना खोकर||

देखी अंसुवन धार, बरसना भूले बदरा।

पिया बसे जब नैन, कहाँ ठहरेगा कजरा ||

निज भाषा ( कुण्डलियाँ)

बरसों हैं बीते मगर,मिला न वह सम्मान।
निज भाषा निज भूमि पर, झेल रही अपमान।।
झेल रही अपमान, बढ़े दिन-दिन अंग्रेजी।
भेज दिए अंग्रेज, न अब तक भाषा भेजी।।
अब तक आशा शेष, गये दिन कल, कल, परसों।
पर भाषा का राज, सहे मन कितने बरसों।।

मोहन रूप ( कुण्डलिया)


अपनी छवि बना कर जो, दर्पण देखा आज|
देख रूप अपना खुद ही, गोरी करती नाज||
गोरी करती नाज, चली इठला कर रानी|
साजन से मनुहार, कराऊंगी मनमानी||
अपनी छवि को भूल, सजन को ताके सजनी|
मोहन रूप निहार, सखी सुधि खोई अपनी ||

सजना चतुर सुजान ( कुण्डलिया)


बात करे हर ले जिया, बन भोला अनजान |
कौन कहे उनकी सखी, सजना चतुर सुजान ||
सजना चतुर सुजान, करे पल-पल मनमानी|
नैन मिला ठग जाय, ठगी रह जाय सयानी ||
पल में हिय बिध जात, अचूक है उसकी घात|
मीठा-सा हो दर्द, याद कर पिया की बात ||
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