अनुभूतियाँ, जज़्बात, भावनाएँ.... बहुत मुश्किल होता है इन्हें कलमबद्ध करना .. कहीं शब्द साथ छोड़ देते हैं तो कहीं एकक अनजाना भय अपनी गिरफ़्त में जकड़ लेता है .... फिर भी अपने जज्बातों को शब्द देने की एक छोटी सी कोशिश है ... 'मेरी क़लम, मेरे जज़्बात' |
बात करे हर ले जिया, बन भोला अनजान |
कौन कहे उनकी सखी, सजना चतुर सुजान ||
सजना चतुर सुजान, करे पल-पल मनमानी|
नैन मिला ठग जाय, ठगी रह जाय सयानी ||
पल में हिय बिध जात, अचूक है उसकी घात|
मीठा-सा हो दर्द, याद कर पिया की बात ||
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आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.
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