Wednesday 2 June 2021

सम्पूर्णता और अपूर्णता

संपूर्णता का अभिमान लिखूँ, अपूर्ण रही जो उड़ान लिखूँ।

व्यक्त कभी अव्यक्त रही  , पीड़ा वह अनजान लिखूँ।

वे क्षण जो हमने संग बाँटे, वे क्षण जो किस्मत से छाँटे।
वे क्षण जो तेरे बिन गुज़रे, खटके मन में बनकर काँटे।
मिलकर भी न मिल पाने का, टूटा जो अरमान लिखूँ। 
व्यक्त कभी अव्यक्त रही  , पीड़ा वह अनजान लिखूँ।

सुख की मदिरा भरी नहीं, न रिस पाए दुःख के छाले|
न छलके ना ही रिक्त हुए, नैनों के अध-पूरित  प्याले |
अपूर्ण मिलन की तड़पन या सम्पूर्ण विरह की आन लिखूँ|
व्यक्त कभी अव्यक्त रही  , पीड़ा वह अनजान लिखूँ।

देह बंध जो बँध न पाया, अनाम रहा निराकार रहा ,
आत्मा के उजले अम्बर को, अपने रंग रँग साकार हुआ ,
निस्सीम गगन तक जो पहुँचा, प्रेम का वह प्रतिमान लिखूँ
व्यक्त कभी अव्यक्त रही  , पीड़ा वह अनजान लिखूँ।

~~~~~~~~~~~~
shalini rastogi


प्रकृति चतेरी

 प्रकृति चतेरी

रोज़ सुबह तूलिका ले अपनी,

सजा देती है आसमानी कैनवास को,

सुंदर नए रंगों से ।

कभी फूलों की लालिमा ले,

मिला देती है उसमें सूरज का सोना,

और उड़ेल देती उसे, 

रुई से धुने हुए बादलों पर।

कभी चाँद के रुपहले कुर्ते से,

एक चमकता धागा खींच,

काढ़ देती है कुछ रुपहले बूटे,

आसमान के आँचल पर।

कभी रात का काजल ले धूसर कर देती,

तो कभी नीलम से आभा ले, 

नीलाभ कर देती।

किरणों की डोर से बाँध

खींच लेती है ऊपर 

क्षितिज में डूबा सूरज का घड़ा ,

और उड़ेल देती है 

सोए अलसाये जहाँ पर 

एक ठंडी, ताजा, खुशनुमा सुबह

सौन्दर्य प्रतिमान


शायद सम्पूर्ण हो तुम 

ईश्वर ने तुम्हें ही तो बनाया है 

पूरा का पूरा 

बाकी सब में छोड़ दी हैं कमियाँ

इसीलिए 

सौन्दर्य के मानक बताने का 

दूसरों की कमियाँ गिनवाने का 

मिला है अधिकार तुम्हें 

पूरा का पूरा .....

तभी तो 

सौन्दर्य नापने को

पैमाना लिए चलते हो अपनी आँखों में 

ईश्वर 

जो कोई खरा न उतरे इन मानकों पर 

उसकी सरेआम बेइज्ज़ती का 

मिल जाता है अधिकार तुम्हें 

पूरा का पूरा

बदकारियाँ

 बदकारियाँ कुछ एक की काबिज़ हुईं वहाँ

चुप्पी शरीफ़ लबों ने थीं ओढ़ ली जहाँ


हो मुखालिफ झूठ के, आवाज़ तो उठाओ

सच की आवाज़, शोर से कब तक दबे यहाँ।


दूर से हम बैठकर तमाशा देखेंगे अभी

आग अपने घर में है, अब-तक लगी कहाँ


देश की अस्मत से हमको वास्ता ही क्या

ज़िद हमारी पूरी हो, तमाशा देखे ये जहां


झुंड में निकले हो, ताकत का तमाशा है

सच था तो दिखावे की ज़रूरत थी कहाँ।

लहज़ा

 


कुछ कह जाना बेहतर है

 माना सहना अच्छा है लेकिन

कुछ कह जाना बेहतर है

इससे पहले कि घनीभूत हों
पीड़ा जम जाए हृदयतल में
इससे पहले कि हिम बन जाएँ
सरस भाव जो अंतस के
पिघल बहें थोड़ा-थोड़ा,
भावों का रिसना बेहतर है।
कुछ कह जाना ही बेहतर है।
कुछ अपनों की बातें जिनसे
मन में कड़वाहट घुलती हो
कुछ जिनसे मन आहत होता
कुछ नागवार गुजरतीं हों
सही वक्त से बतला देना
दुःख जतलाना ही बेहतर है।
कुछ कह जाना ही बेहतर है।
अंतर्द्वंद्वों का झंझावात,
प्रेमभाव ले उड़ता है।
मौन नहीं होता जो मुखरित,
मन भीतर भीतर मथता है।
बाँध टूटने से पहले,
थोड़ा रिस जाना बेहतर है।
कुछ कह जाना बेहतर है।
अविश्वास की धरती में,
बीज द्वेष के बोना क्यों ?
कड़वाहट से सिंचित कर,
विष बेल पनपने देना क्यों?
जड़ विद्वेष की जमने से पहले,
अंकुर उखाड़ देना बेहतर है
कुछ कह जाना ही बेहतर है।

वसंत के रंग (कवित्त)

 वसंत के रंग कवित्त के संग

आय हो वसंत, बड़े बन-ठन के महंत,
ये तो कहो प्रीत बान, किस पे चलाओगे?
पीत पगड़ी पहन, पीत बाना देह धर,
पीत पुषपों से धरा सगरी सजाओगे।
विरही जनों के प्राण, बींध निज कामबाण,
तड़पता देख दूर खड़े मुसकाओगे।
रस रंग की फुहार, प्रेमी जन- मन डार
रस बरसा पियास दुगनी बढ़ाओगे।
कोयल के कुँजन में, भँवरे की गुँजन में
जानते हैं प्रेम गीत सबको सुनाओगे।
बौर अमुवा की गंध, फुलवा का मकरंद,
साँस साँस में समा, मन भरमाओगे।
पिया बिन जो उदास, विरहन का तिरास,
मीत मनमथ के, समझ कैसे पाओगे।
लिखी अँसुवन पाती, भेज पर नहीं पाती,
उन तक क्या संदेसा, मेरा पहुँचाओगे।
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...
Blogger Tips And Tricks|Latest Tips For Bloggers Free Backlinks