Friday 31 August 2012

तेरा दीदार


आ जाओ रू-ब-रू एक बार कि तेरा दीदार फिर कर लें
दिल के सहरा पे बरसो, कि फिर बहार  हम कर लें

नज़रों  से पी जाएँ तुझे कि रूह में उतार लें
प्यास एक उम्र की तमाम हम   कर लें


छिपाए नहीं छिपता ये दर्द अब इन आँखों में
बरस कर सावन को आज  , शर्मसार हम कर दें

मुतमईन रह कि राज़, ना जान पायेगा कोई
रुसवा न हो तू कि बदनामी, सरसाज हम कर लें 

Monday 27 August 2012

प्यार............. ?



प्यार
एक ऐसा बीज 
जो
अंकुरित होते ही
न सिंचित हो
प्रतिप्रेम के जल से
तो
ह्रदय कि मरुभूमि में ही
दफ़न , 
सूख जाता है

हाँ
अंकुरित हुआ था कभी
इस दिल कि जमीं पर भी
बहुत उम्मीद के साथ 
ताकती थी तुम्हे
शायद आज तो कहोगे
कि हाँ, 
तुम्हें भी
हो गया मुझसे प्यार 
अच्छी लगती हूँ मैं
मेरी सभी खामियों के साथ 
चाहते हो तुम मुझे
दीवानावार

पर शायद तुमने सदा 
उस प्यार को 
अपना अधिकार ही समझा 
और 
मेरा कर्त्तव्य 

पर.. जिस प्यार को देखना चाहा 
तुम्हारी नज़रों में
वो प्यार शायद था ही नहीं
तुम्हारे मन में
हर रोज उम्मीद की एक शमा
जलती - बुझती रही 
और पिघलता मोम 
झुलसाता रहा
प्रेमपल्लव 

आज
तुम करते इज़हार 
कहते बार - बार
कि तुम करते मुझसे प्यार.

मुझे भी परवाह तुम्हारी
हर छोटी - बड़ी बात की फ़िक्र  तुम्हारी
जानती कि नहीं रह पाऊँगी 
 तुम बिन अब
आदत बन चुके हैं 
एक-दूसरे की  हम 
बहुत सोचती हूँ तुम्हारे लिए
पर अब शायद
प्यार............. ?



यादें

यादें  खँगालने के लिए 
ज़रूरी नहीं
कि यादों के शांत जल में 
पत्थर ही फेंका जाए
एक छोटी सी बूँद ही 
भँवर उठा देती है
दूर - दूर तक उठती हैं तरंगें 
वर्तमान का प्रतिबिम्ब मिटा देती हैं.
और भँवर के हर वलय में 
दिखते हैं
अतीत के चलचित्र
जो एक दूसरे में मिल
और भ्रमित कर जाते हैं
और अतीत की छाप 
हम अपने वर्तमान पर लिए
कुछ और स्मृतियाँ 
सहेज उन्हें 
दिल के ड्राइंग रूम की 
दीवारों पर सजाते हैं 


Tuesday 14 August 2012

गम- औ - खुशी



गम

आंसू, आहें,तड़पन, उलझन 
गम नहीं, इज़हार-ए-गम हैं.
वर्ना गम तो वो है 
जो मानिंद-ए-नासूर 
भीतर ही भीतर  रिसता है
इस ज्वालामुखी का लावा तो
पिघल, रगों  में ही बह उठता है 

खुशी

फकत होंठो पे ही नहीं खिलती 
ये तो हर गुन्चे को महकती है 
खुशी तो वो है जो खुदा का नूर बन 
जहाँ को रौशन बनाती है 
जब छिड़क देती है रंग अपने 
फलक पे इन्द्रधनुष यही सजाती है.

Saturday 11 August 2012

बहुत बोलते हैं ये लब


माना
बहुत बोलते हैं ये लब
लफ्ज़-ब-लफ्ज़
कभी
राज-ए-दिल भी खोलते हैं
ये लब
पर
ज़रूरी तो नहीं
हर बार बयाँ कर पायें लब
लिख पाए कलम
फ़साना-ए-जिंदगी

कितने वाकयात, कितने ख्यालात
गुज़र जाते हैं
सीधे दिल से
थरथराते रह जाते हैं लब
खामोश रह जाती कलम

कहानी कहाँ हर बार
कागज़ पे उतर
जज़्बात
नक्श-ब-नक्श
उकेर पाती है

न जाने कितनी ही बार
आरजू
सीने में दफ़न
पल पल घुटती
दम तोड़ जाती हैं 

Friday 10 August 2012

कृष्णमय

कृष्णमय

हर रंग लगे
बेरंग
बस
श्याम रंग में रंग
हरेक रंग को
भूल जाना चाहती आज
हो जाना चाहती
कृष्णमय





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