माना
बहुत बोलते हैं ये लब
लफ्ज़-ब-लफ्ज़
कभी
राज-ए-दिल भी खोलते हैं
ये लब
पर
ज़रूरी तो नहीं
हर बार बयाँ कर पायें लब
लिख पाए कलम
फ़साना-ए-जिंदगी
कितने वाकयात, कितने ख्यालात
गुज़र जाते हैं
सीधे दिल से
थरथराते रह जाते हैं लब
खामोश रह जाती कलम
कहानी कहाँ हर बार
कागज़ पे उतर
जज़्बात
नक्श-ब-नक्श
उकेर पाती है
न जाने कितनी ही बार
आरजू
सीने में दफ़न
पल पल घुटती
दम तोड़ जाती हैं
सच कहा...कई आरजूएँ कई तमन्नाएँ कई जज़्बात दम तोड देते हैं भीतर ही.
ReplyDeleteसुन्दर रचना
अनु
धन्यवाद अनु जी!
Deleteसच कहा हर बार
ReplyDeleteन लफ्ज़ कह पाते है ना कलम लिख पाती है..
और कितनी ही बाते दबी होती है सीने में..
कोमल भावो की सहज अभिव्यक्ति..
आभार रीना जी!
Deleteकहानी कहाँ हर बार
ReplyDeleteकागज़ पे उतर
जज़्बात
नक्श-ब-नक्श
उकेर पाती है.... मन के चक्रवात में घूमती है कई कहानियाँ अपने सत्य के साथ ...
बिल्कुल सही कहा रश्मि जी.
Deleteसाभार
kya baat ,kya baat ,kya baat.......:)
ReplyDeleteबहुत गहन और सुन्दर है पोस्ट।
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