Friday, 31 August 2012

तेरा दीदार


आ जाओ रू-ब-रू एक बार कि तेरा दीदार फिर कर लें
दिल के सहरा पे बरसो, कि फिर बहार  हम कर लें

नज़रों  से पी जाएँ तुझे कि रूह में उतार लें
प्यास एक उम्र की तमाम हम   कर लें


छिपाए नहीं छिपता ये दर्द अब इन आँखों में
बरस कर सावन को आज  , शर्मसार हम कर दें

मुतमईन रह कि राज़, ना जान पायेगा कोई
रुसवा न हो तू कि बदनामी, सरसाज हम कर लें 

23 comments:

  1. छिपाए नहीं छिपता ये दर्द अब इन आँखों में
    बरस कर सावन को आज , शर्मसार हम कर दें
    वाह क्या बात है बेहतरीन

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    1. धन्यवाद अरुण .

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    2. आपका स्वागत है आदरेया कभी यहाँ www.arunsblog.in भी पधारें

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  2. धन्यवाद जयकृष्ण जी!

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  3. मुतमईन रह कि राज़, ना जान पायेगा कोई
    रुसवा न हो तू कि बदनामी, सरसाज हम कर लें

    वाह ,,,, बहुत लाजबाब नज्म,,,शालिनी जी,,,,

    RECENT POST,परिकल्पना सम्मान समारोह की झलकियाँ,

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    1. धन्यवाद धीरेन्द्र जी !

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  4. बहुत खूब |||
    बेहतरीन गजल है दी .....
    :-)

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  5. Replies
    1. धन्यवाद दिगंबर जी!

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  6. बहुत खूब...दूसरा शेर सबसे अच्छा लगा.....तीसरे में ले की जगर दे आ गया ।

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    1. धन्यवाद इमरान जी .... गलती कि ओर ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया ...पर इस शेर में अगर 'लें' लिखा जाये तो क्या यह ठीक लगेगा ?

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    2. देरी कि माफ़ी....अब बिलकुल ठीक है ।

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  7. तमाम अशआर उम्दा हैं ,भाव भी अर्थ और व्यंजना में भी .

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    1. धन्यवाद वीरेंदर जी!

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  8. This comment has been removed by a blog administrator.

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  9. नज़रों से पी जाएँ तुझे कि रूह में उतार लें
    प्यास एक उम्र की तमाम हम कर लें ।
    प्यार की अभिव्यक्ति के लिए कितना भी लिखा जाये कम है । आपने बहुत ही सुंदर .........अति सुन्दर रूप से व्यक्त किया है ।बहुत बढियां शालिनी जी।

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  10. छिपाए नहीं छिपता ये दर्द अब इन आँखों में
    बरस कर सावन को आज , शर्मसार हम कर दें
    wah lajbab gajal shalini ji ....bilkul chhoo jane waali ...badhai ke sath abhar bhi sweekaare

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  11. नज़रों से पी जाएँ तुझे कि रूह में उतार लें
    प्यास एक उम्र की तमाम हम कर लें...bahut khoob

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  12. प्रेम की एक खास एहसास..सुन्दर रचना..धन्यवाद !!

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