आ जाओ रू-ब-रू एक बार कि तेरा दीदार फिर कर लें
दिल के सहरा पे बरसो, कि फिर बहार हम कर लें
नज़रों से पी जाएँ तुझे कि रूह में उतार लें
प्यास एक उम्र की तमाम हम कर लें
छिपाए नहीं छिपता ये दर्द अब इन आँखों में
बरस कर सावन को आज , शर्मसार हम कर दें
मुतमईन रह कि राज़, ना जान पायेगा कोई
रुसवा न हो तू कि बदनामी, सरसाज हम कर लें
छिपाए नहीं छिपता ये दर्द अब इन आँखों में
ReplyDeleteबरस कर सावन को आज , शर्मसार हम कर दें
वाह क्या बात है बेहतरीन
धन्यवाद अरुण .
Deleteआपका स्वागत है आदरेया कभी यहाँ www.arunsblog.in भी पधारें
Deleteधन्यवाद जयकृष्ण जी!
ReplyDeleteमुतमईन रह कि राज़, ना जान पायेगा कोई
ReplyDeleteरुसवा न हो तू कि बदनामी, सरसाज हम कर लें
वाह ,,,, बहुत लाजबाब नज्म,,,शालिनी जी,,,,
RECENT POST,परिकल्पना सम्मान समारोह की झलकियाँ,
धन्यवाद धीरेन्द्र जी !
Deleteबहुत खूब |||
ReplyDeleteबेहतरीन गजल है दी .....
:-)
शुक्रिया रीना जी!
DeleteKhoobsoort hain sabhi sher ... Bahut khoob ...
ReplyDeleteधन्यवाद दिगंबर जी!
Deleteबहुत खूब...दूसरा शेर सबसे अच्छा लगा.....तीसरे में ले की जगर दे आ गया ।
ReplyDeleteधन्यवाद इमरान जी .... गलती कि ओर ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया ...पर इस शेर में अगर 'लें' लिखा जाये तो क्या यह ठीक लगेगा ?
Deleteदेरी कि माफ़ी....अब बिलकुल ठीक है ।
Deleteतमाम अशआर उम्दा हैं ,भाव भी अर्थ और व्यंजना में भी .
ReplyDeleteधन्यवाद वीरेंदर जी!
DeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteनज़रों से पी जाएँ तुझे कि रूह में उतार लें
ReplyDeleteप्यास एक उम्र की तमाम हम कर लें ।
प्यार की अभिव्यक्ति के लिए कितना भी लिखा जाये कम है । आपने बहुत ही सुंदर .........अति सुन्दर रूप से व्यक्त किया है ।बहुत बढियां शालिनी जी।
धन्यवाद आनंद जी!
Deleteछिपाए नहीं छिपता ये दर्द अब इन आँखों में
ReplyDeleteबरस कर सावन को आज , शर्मसार हम कर दें
wah lajbab gajal shalini ji ....bilkul chhoo jane waali ...badhai ke sath abhar bhi sweekaare
धन्यवाद नवीन जी!
Deleteनज़रों से पी जाएँ तुझे कि रूह में उतार लें
ReplyDeleteप्यास एक उम्र की तमाम हम कर लें...bahut khoob
dhanyvaad asha ji!
Deleteप्रेम की एक खास एहसास..सुन्दर रचना..धन्यवाद !!
ReplyDelete