Monday, 11 March 2013

गुमशुदा


गुमशुदा से हो गए वो, शहर छोड़े बैठे हैं 
हम तो उनकी चौखट से, आस जोड़े बैठे हैं.

है गुरूर या गैरत , गैरियत है या गफलत,
अपनी है गरज फिर भी,मुँह को मोड़े बैठे हैं 

अर्ज़ पर, गुज़ारिश पर भी ,खफ़ा से रहते हैं, 
क्या गुमान है इतना, दिल जो तोड़े बैठे हैं .

काश अब निकल जाए, सब गुबार ये दिल का,
कितने तूफान आँखों में, दिल निचोड़े बैठे है 

अब उन्हें बुलाने को कोई गुमाश्ता भेजें,
कासिदों की तो हिम्मत वो, कबकी तोड़े बैठे हैं,



23 comments:

  1. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज के ब्लॉग बुलेटिन पर |

    ReplyDelete
    Replies
    1. ब्लॉग बुलेटिन पर स्थान देने के लिए शुक्रिया ...

      Delete
  2. Replies
    1. धन्यवाद मह्नेद्र जी!

      Delete
  3. Replies
    1. शुक्रिया अज़ीज़ जयपुरी साहब!

      Delete
  4. बहुत उम्दा प्रस्तुति आभार

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    अर्ज सुनिये

    आप मेरे भी ब्लॉग का अनुसरण करे

    ReplyDelete
    Replies
    1. दिनेश जी , आपके पधारने व कमेन्ट के लिए आभार!

      Delete
  5. गैरियत है कि गफ़्लत है ...

    बहुत सुंदर प्रयोग ....!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. हरकीरत जी, हौंसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया..

      Delete
  6. Replies
    1. शुक्रिया मुकेश जी!

      Delete
  7. ये दिल का गुबार ऐसे नहीं निकलने वाला ...
    बहुत उम्दा गज़ल ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. अपना दिल का गुबार तो गज़ल कह के निकल जाता है दिगंबर जी ..बहुत बहुत धन्यवाद!

      Delete
  8. Replies
    1. धन्यवाद निवेदिता!

      Delete
  9. बहुत उम्दा गज़ल है आपकी! बधाई स्वीकारें!
    एक सलाह है आपको कि काफिया और बहर पर थोड़ा ध्यान दिया करें।
    सादर!

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...
Blogger Tips And Tricks|Latest Tips For Bloggers Free Backlinks