सोऽहं
मैं एक कण , मैं ब्रह्माण्ड,
इस सृष्टि में, सृष्टा का मान |
सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म मैं,
और व्यापक से व्यापक परिमाण |
यत्र-तत्र-सर्वत्र मैं ही
और मैं ही अकिंचनता का भान |
मेरी परिधि में विश्व बँधे और
मैं एक बिंदु, शून्य समान |
मैं कर्ता, मैं ही हूँ कर्म,
मैं ही कर्मों का परिणाम |
मैं कारक हूँ, मैं कारण हूँ,
मैं बीज तत्त्व, मैं वृक्ष समान|
क्या देह समझते हो मुझको ....?
मैं आत्म तत्त्व, परमात्म अंश,
सृष्टा से परे कब, मेरी पहचान |
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द्वारा शालिनी रस्तौगी
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