अपने देवी- देवताओं को हमने,
नहीं बनाया ,
अपनी प्रेरणा का स्रोत,
मात्र श्रद्धा और आस्था का केंद्र बनाकर,
लीन हो गये भक्ति में…..
केवल अभय मुद्रा में उठे ,
उनके हाथ ,
और उनको अपनी रक्षा की ज़िम्मेदारी सौंप,
स्वयं हो गए,
निष्क्रिय ….
नहीं देखे हमने,
अस्त्र-शस्त्र से सज्जित,
उनके दूसरे हाथ।
नहीं दिखे हमें,
उनके चरणों में पड़े ,
शिरछिन्न असुर ।
कुछ तो ली होती प्रेरणा,
कुछ तो अपनाया होता उनका चरित्र ,
तो आज नहीं कहते ,
ख़तरे में है …….
सनातन
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