Saturday, 17 March 2018

रीती गागर

बूँद -बूँद रिसते,
जब रीत जाता है मन।
मन की खाली गागर लिए,
निकल पड़ती हूँ फिर,
भरने को उसमें
अनचीन्हे दर्द
~~~~~~~~~~
आँसुओं से सीले थे ख्वाब, सुलगते रहे न जल पाए।
बेड़ियाँ पाँव मेरे, तेरे पाँवों पंख, चाह के भी संग न चल पाए।
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शालिनी रस्तौगी

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