बूँद -बूँद रिसते,
जब रीत जाता है मन।
मन की खाली गागर लिए,
निकल पड़ती हूँ फिर,
भरने को उसमें
अनचीन्हे दर्द
~~~~~~~~~~
आँसुओं से सीले थे ख्वाब, सुलगते रहे न जल पाए।
बेड़ियाँ पाँव मेरे, तेरे पाँवों पंख, चाह के भी संग न चल पाए।
~~~~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी
जब रीत जाता है मन।
मन की खाली गागर लिए,
निकल पड़ती हूँ फिर,
भरने को उसमें
अनचीन्हे दर्द
~~~~~~~~~~
आँसुओं से सीले थे ख्वाब, सुलगते रहे न जल पाए।
बेड़ियाँ पाँव मेरे, तेरे पाँवों पंख, चाह के भी संग न चल पाए।
~~~~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.