बैरी बन बैठा हिया, जाय बसा पिय ठौर ।
गात नहीं बस में रहा, कहूँ करे कुछ और ।।
गात नहीं बस में रहा, कहूँ करे कुछ और ।।
विद्रोही नैन हुए, सुनें नहीं इक बात ।
बिन पूछे पिय से लड़े, मिली जिया को मात ।।
बन कस्तूरी तन बसा , छूटे गात सुगंध ।
लाख छिपाया ना छिपा, प्रेम बना मकरंद ।।
नैनों से छलकी कभी, फूटी कभी बन बैन ।
प्रीत बनी पीड़ा कभी, कभी बन गई चैन ।।
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