माँ
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कौन कहता है कि सिर्फ माँ होती है माँ
कभी पिता, कभी बहन
कभी सहेली, कभी दोस्त
कभी हमराज़, कभी मार्गदर्शक
तो कभी गुरु बन जाती माँ।
कभी दीवार बन गलत रास्ते पर खड़ी हो जाती
कभी दरवाज़ा बन खुशियों को बुलाती
कभी छत बन कर हर मुसीबत को
अपने सर ले लेती है माँ
सिर्फ माँ नहीं होती है माँ
कभी लोरी बन नींदों को सजाती
कभी करुणा बन आँखों से छलक जाती
कभी मुस्कान बन होंठों पर कलियाँ खिलाती
कभी हौंसला बन इरादों को फौलाद बनाती है माँ
सिर्फ माँ नहीं होती है माँ
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क्या लिखा है आपने सुंदर रचना !!
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी
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