मैं कौन?
क्या अस्तित्व मेरा?
क्या मेरा कृत्य?
क्या कर्त्तव्य मेरा?
न उद्भव मेरा मेरे वश में
न अवसान पर अधिकार मेरा।
जब तू ही विधि, तू ही विधाता
तू ही नियति, तू ही नियंता
तू ही सृष्टि, तू नियामक सृष्टि का.....
तेरा ही संकेत पाकर ,
चलते सब कारोबार,
क्या जड़, क्या चेतन,
सब पर तेरा अधिकार।
मेरी हर श्वास पर,
हर आती जाती आस पर,
विश्वास पर, अविश्वास पर
मेरी चेतना,
मेरे अवचेतन-अचेतन पर....
जब रोम रोम मेरा निबद्ध तुझसे।
तो कैसे हुई अच्छी?
कैसे बुरी मैं?
क्या कृत्य अच्छा, क्या बुरा मेरा।
उचित-अनुचित, पाप -पुण्य
अच्छा बुरा का दोष
क्योंकर हुआ मेरा?
मैं मात्र कठपुतली
डोर हाथ तेरे,
सौंपती हूँ तुझको,
सब पुण्य-पाप तेरे।
न मेरी इच्छा से कुछ गठित कुछ
न कुछ किया घटित मैंने।
मुझ अकिंचन की क्षमता क्या?
जो भी किया , तुमने किया
हर घटित का कारण क्या ?
बस
इतना ही जानती मैं ...
सः त्वं
सा न अहम्
~~~~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी
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