ग़ज़ल
अब न कोई पीठ पीछे घात होनी चाहिए
साफ़गोई से हरेक अब बात होनी चाहिए
अब न कोई पीठ पीछे घात होनी चाहिए
साफ़गोई से हरेक अब बात होनी चाहिए
हर ऐरे गैरे के बस का ये पागलपन है नहीं
इश्क फरमाने की भी औकात होनी चाहिए
इश्क फरमाने की भी औकात होनी चाहिए
फ़र्क क्यों हो आदमी के बीच कोई धर्म का
एक ही बस इंसानियत की जात होनी चाहिए
एक ही बस इंसानियत की जात होनी चाहिए
घर किसी मजलूम का महरूम खुशियों से न हो
हर के घर में खुशियों की सौगात होनी चाहिए
हर के घर में खुशियों की सौगात होनी चाहिए
बात तब है सर उठा संसार में नेकी चले
औ बदी की ही हमेशा मात होनी चाहिए
औ बदी की ही हमेशा मात होनी चाहिए
रात मावस की अगर जो चाँद से महरूम हो
आसमां में तारों की बारात होनी चाहिए
आसमां में तारों की बारात होनी चाहिए
देश के हालात से कोई न अब गाफ़िल रहे
हर मुआमले की ही मालूमात होनी चाहिए
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शालिनी रस्तौगी
हर मुआमले की ही मालूमात होनी चाहिए
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शालिनी रस्तौगी
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