जीवन की सुगबुगाहट
होती है
जब भी होती है
मृत्यु की आहट..
हर समाप्ति के साथ
उद्भव होता है आरम्भ
हर अंत होता है
नई संसृति का आदि
कोंपलें फूटती तभी नई जब
त्यागता वृक्ष
पीत. जर्जर, निष्प्राण पात
होती है
जब भी होती है
मृत्यु की आहट..
हर समाप्ति के साथ
हर अंत होता है
नई संसृति का आदि
कोंपलें फूटती तभी नई जब
त्यागता वृक्ष
पीत. जर्जर, निष्प्राण पात
अहम् के अंत से ही
जन्मता भाव स्वत्व का
छूटते हाथ
गढ़ते हैं नए रिश्ते
समाप्ति पर ही कौमार्य की
होती है गर्भ में
जीवन की सुगबुगाहट .....
जन्मता भाव स्वत्व का
छूटते हाथ
गढ़ते हैं नए रिश्ते
समाप्ति पर ही कौमार्य की
होती है गर्भ में
जीवन की सुगबुगाहट .....
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