अनुभूतियाँ, जज़्बात, भावनाएँ.... बहुत मुश्किल होता है इन्हें कलमबद्ध करना .. कहीं शब्द साथ छोड़ देते हैं तो कहीं एकक अनजाना भय अपनी गिरफ़्त में जकड़ लेता है .... फिर भी अपने जज्बातों को शब्द देने की एक छोटी सी कोशिश है ... 'मेरी क़लम, मेरे जज़्बात' |
सवैया ले गगरी निकली पनिहारिन, छैल सभी निकले घरसे। मंथर सी गति, चाबुक सी कटि, पैर धरे भू मन हुलसे। नाजुक हाथ कलाइ मुड़ी, घट नीर भरा न गया उनसे। रूप भरी छलकी गगरी, मन प्यास बुझी नयना हरसे। शालिनी रस्तौगी (चित्र गूगल से साभार)
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