Monday 5 November 2012

मेरे शहर के लोग

कहने को हाथ मिलाते हैं, गले लगते हैं मगर 
दिल में कुछ और जुबां पे कुछ और ही रखते हैं 


नफासत पसंद हैं, खुशनवीस है मेरे दोस्त 
मौत के पैगाम भी सजा के लिखा करते हैं 



कितने पुर खुलूस हैं मेरे शहर के लोग
अमन के लिफ़ाफ़े में दहशत का मज़मून रखते हैं 


चर्चा-ए-अमन है सरगोशी से हर तरफ
दहशत का सामान मगर बादस्त रखते हैं 

गुमाँ पाले बैठे हैं दिल में  फरिश्ता होने का 
इंसान होने का भी मगर, कहाँ ये शऊर रखते हैं 

हवाओं में बेकरारियाँ, सरगोशियाँ फ़लक पे 
खुदा खैर कि तूफ़ान, आमद को सफर करते हैं 

जिस तरफ नज़र जाए, एक भगदड़ सी मची है 
अपनी कहने कि फुरसत न सुनने का सबर रखते हैं

चाँद के दाग गिनाते उन्हें भी देखा है अक्सर
स्याह दामन के जिनके अब दाग नहीं दिखते हैं 

बेगैरती का चश्मा कुछ इस तरह  आँखों पे चढ़ा है
मुफलिस के आँसुओं में इन्हें वोट दिखा करते हैं 

अपाहिज की वैसखियों से भी वो नोट कमाते हैं 
दानिशमंदी का दिखावा जो सरेआम किया करते हैं 


( पुर खुलूस - प्रेम से भरपूर, बादस्त- हाथों में, खुशनवीस- सुन्दर लिखावट वाला))

42 comments:

  1. पढ़कर ऐसा लगा जैसे की मिर्ज़ा ग़ालिब की या डॉक्टर इकबाल की कोई नज्म पढ़ रहा हूँ.कहीं से भी ये नही लगता की ये आपने लिखी है.सदा इसी तरह साफ़ सुथरा लिखती रहें.यही शुभकामना देता हूँ आपको.

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    1. आमिर भाई , आपकी शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया...आपने तो बहुत बड़ी बात कह दी... मैं तो अभी आप सब से सीख ही रही हूँ.... आपका दिशा निर्देशन बहुत सहायक सिद्ध होता है ... बस ऐसे ही सहयोग कि अपेक्षा है आपसे
      बाहु बाहु धन्यवाद!

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  2. वाह,,,, बहुत ही उम्दा गजल ,,,,,शालिनी जी बधाई स्वीकारें,,,

    RECENT POST : समय की पुकार है,

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    1. धन्यवाद धीरेन्द्र जी ..

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  3. चाँद के दाग गिनाते उन्हें भी देखा है अक्सर
    स्याह दामन के जिनके अब दाग नहीं दिखते हैं ... गिनने में वही लगे रहते हैं

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    1. रश्मि जी, हार्दिक आभार!

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  4. आपकी उम्दा पोस्ट बुधवार (07-11-12) को चर्चा मंच पर | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

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    1. प्रदीप जी... चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए धन्यवाद...

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  5. चाँद के दाग गिनाते उन्हें भी देखा है अक्सर
    स्याह दामन के जिनके अब दाग नहीं दिखते हैं

    खूबसूरत गज़ल

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    1. धन्यवाद संगीता जी...

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  6. आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।

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    1. तारीफ़ के लिए शुक्रिया संजय जी!

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  7. क्या कहने ...बेहद उम्दा ...
    अंतिम का तंज तो बड़ा ही सटीक हैं.



    मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत हैं ...
    http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/11/blog-post_6.html

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    1. रोहितास जी ... रचना पर ध्यान देने के लिए शुक्रिया...

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  8. खूबसूरत ग़ज़ल......

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  9. दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिये .,ये नया शहर है कुछ दोस्त

    बनाते रहिये ,

    बात कम कीजे ,ज़हानत को छिपाते रहिये .

    कहने को हाथ मिलाते हैं ,गले लगतें हैं ,

    दिल में कुछ और जुबां पे कुछ और ही रखते हैं .

    "में "शब्द छूट गया है लिख लें .बढ़िया रचना पढ़वाई है हमारे इस दौर की .बधाई .

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    1. धन्यवाद वीरेंद्र जी, गलती का सुधार करवाने के लिए शुक्रिया !

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  10. कोई आँख भी न मिलाएगा ,

    जो गले मिलोगे तपाक से ,

    ये नए मिजाज़ का शहर है ,ज़रा फासले से मिला करो .

    हर आदमी में होतें हैं दस बीस आदमी ,

    जिससे भी मिलना कई बार मिलना .

    मेरा खैरमकदम करने के लिए इस्तकबाल करने के लिए आपका ,सभी ब्लोगार्थियों का दिल से आभार .
    नेहा से -

    वीरुभाई ,D BLOCK ,#4 ,NOFRA,COLABA ,MUMBAI ,400-005.

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    Replies
    1. क्या बात कही है वीरू भाई... बिल्कुल सही
      रचना पर ध्यान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!

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  11. Replies
    1. शुक्रिया प्रतिभा जी!

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  12. बेहतरीन गजल ,सुन्दर उपुक्त शब्द चयन की आमद ...बधाईयाँ

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    1. उदय वीर जी, तहे दिल से शुक्रिया आपकी हौंसला अफज़ाई के लिए.

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  13. दिल की बातें जबां पर, कैसे आयें मित्र।
    नवयुग में बिगड़ा हुआ, उज्वल-धवल चरित्र।।

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    1. बिल्कुल सही कहा सर आपने...बहुत बहुत धन्यवाद!

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  14. क्या बात है शालिनी वाह मजा आ गया सुन्दर रचना

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  15. बहुत बढ़िया प्रस्तुति बहुत बहुत बधाई आपको

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    1. राजेश कुमारी जी... बहुत बहुत आभार!

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  16. शालिनी जी कमाल कर दिया इस बार तो आप ने.....दाद कबूल करें.........हैट्स ऑफ इसके लिए।

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    Replies
    1. आपको पसंद आया इमरान जी....जहे नसीब... तारीफ़ के लिए तहे दिल से शुक्रिया कुबूल कीजिए..

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  17. बहुत बढ़िया दिल को छू जाने वाले रचना ..
    हार्दिक शुभकामनायें!

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    1. kavita ji, blog par aapka abhinandan.... bahut bahut dhanyvaad!

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  18. बहुत खूबसूरत गज़ल ।

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  19. bahut khoob Shalini ji .....bahut hi sundar rachana ....bs yun kahiye hr sher lakhon ke lage ....abhar.

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    1. नवीनजी, आपका बहुत बहुत शुक्रिया !

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  20. शानदार ग़ज़ल

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  21. शालिनी जी , आपकी टिप्पणियाँ हमारे लेखन की आंच हैं ,एड़ और उत्प्रेरण बनती हैं .शुक्रिया . बहुत खूब डुबोया अनुभूतियों ने आपकी .आज की आवाज़ है पुकार है तंज है इन शैरों में .

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