आज मैंने जाना
क्यों बाँबरा था गोकुल
बंसी पर कान्हा की
किस सम्मोहन में बंधी
चली आती थी गोपियां
क्यों घेर लेती थीं गायें
भूल हरी घास को चरना
क्यों छिपा देती थी राधे
क्या बैर था राधा का
बंसी से कान्हा की
कैसी मोहिनी होती है
तान की
पुलक उठते रोम
सरस जाता तन
भीज उठता है मन
जमुना के जल से
और बन जाता
फिर
गोकुल धाम .............
कोई-कोई दिन अपने आप में इतने अद्भुत संयोग लिए होता है कि विश्वास करना ही कठिन होता है कि हम वास्तविकता में हैं या स्वप्न जगत में विचरण कर रहे हैं| कुछ ऐसा ही अद्भुत संयोग मेरे साथ घटित हुआ| संध्या समय अपनी चचेरी बहन के विवाह में शामिल होकर रामपुर से वापस आ रही थी कि विद्यालय से सन्देश मिला कि कल सुबह जल्दी विद्यालय पहुँच कर पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जी को इंदिरागांधी अंतर्राजीय एअरपोर्ट से लेने जाना है| एक क्षण को तो कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ| इतने महान बाँसुरी वादक... और कहाँ मैं .... क्या बात करुँगी ..... खैर जैसे तैसे रात बीती और सुबह में विद्यालय के सुशांत व अद्वेता ( head boy and head girl of our school) के साथ बुके लेकर टर्मिनल ३ पर पहूँच गई... पंडित जी पधारे साथ में उनको शिष्या सुस्मिता आचार्य भी थी ..... पंडित हरिप्रसाद जी सफ़ेद कुर्ते पायजामे पर मात्र एक शाल गले में डाले हुए थे .... ७५ वर्ष के लगभग आयु , दिल्ली की सुबह-सुबह की सर्दी और और सिर्फ इतने कम गर्म कपडे...... देख कर हैरानी हुई .... परिचय व बुके आदि देने की प्रारम्भिक औपचारिकताएं हुईं ..... रहा नहीं गया तो कह ही दिया.." पंडित जी, आपको ठण्ड नहीं लग रही है".... वे हँस पड़े ......बोले कि ठण्ड को तो जितना महसूस करो उतनी ही लगती है ...आखिर जो देसी घी अपने ज़माने में खाया है वो कब काम आएगा .... कितना सरल सा जवाब ...इतनी बड़ी शख्सियत और ऐसी सादगी देख कर भी हैरानी हुई ... राष्ट्रपति भवन से कवीन्द्र देवगन जी भी उनके स्वागत के लिए पधारे हुए थे पर उन्होंने पहले गुडगाँव आने को कहा ... और हम पाँच लोग गुरगाओं की और चल दिए ... रास्ते भर इतने अपनेपन और प्यार से बातें करते रहे कि मन में जो भी हिचक थी वो सब दूर हो गई .... गुडगाँव में हो रहे तीव्र विकास को देख वे आश्चर्य चकित थे .... उसके बाद जो बातचीत का सिलसिला निकाला तो अपने बचपन की बातें कि किस प्रकार अपने पिताजी की इच्छा के विरुद्ध उंहोने पहलवानी और अखाड़े को छोड़ संगीत के क्षेत्र को अपनाया , आज गुडगाँव में गाड़ियों की बढ़ती संख्या को देख लोगों की दिखावे की प्रवृति पर कटाक्ष करते हुए कैसे विवाह में मिली हरे रंग की साईकिल को लोगों को दिखाने के लिए वे दिन भर उसपर घूमते रहे ... जब अद्वेता ने पूछा कि आपने किस उम्र से बाँसुरी वादन आरम्भ किया तो हँस कर बोले कि बस नौ वर्ष के रहे होंगे वे .... पर हैरानी की बात यह थी की आज भी जवानों की सी जिंदादिली से भरपूर उनकी बातें छोटे-बड़े सभी को अपने सम्मोहन में बाँध लेती हैं.... फिल्मों के क्षेत्र में अपने सफर की यादें ताज़ा करते हुए उन्होंने कहा कि सबसे पहले उन्होंने ही अमिताभ जी से 'रंग बरसे '(सिलसिला) और श्री देवी से चांदनी फिल्म में गाना गवाया था.... बातचीत के बीच कब 20-25 मिनट बीते और होम गुडगाँव पहुँच गए | इसके बाद उनके स्वागत-सत्कार का भार प्रधानाचार्या जी को सौंप दिया | इसके बॉस विद्यालय के ऑडिटोरियम में पंडित जी के बाँसुरी वादन का इंतज़ाम किया गया था... अन्य विद्यालयों से भी बहुत से लोग कार्यक्रम हेतु आए हुए थे... पंडित जी स्टेज पर पधारे व कार्यक्रम का औपचारिक शुभारम्भ किया गया ... सबसे पहले अपने साथीयों का परिचय देते हुए पंडित जी ने सुबह का राग 'ललिता' अपनी बाँसुरी पर छेड़ा ... सारा माहौल उस धुन में खो सा गया... इसके बाद तो फिर कई भजन , सुस्मिता का बांसुरी वादन , बच्चों द्वारा बहुत से प्रश्न बस ...पता ही नहीं चला की कि समय कैसे बीता...
अब सोच रही हूँ लग रहा है कि वाकई यह सब सच था य सपना .................
भाग्यवान हैं आप जो पूज्य पंडित जी का इतना निकट सानिध्य आपको मिला..बधाई
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने कैलाश जी!
Deleteसधन्यवाद
एसे महान लोगो मिलना एक सुखद संयोग है,,
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति ,,,,
resent post : तड़प,,,
इस सुखद संयोग को मैं हमेशा के लिए अपनी स्मृति में संजोये रखना चाहती हूँ
Deleteसधन्यवाद !
बेहतरीन उम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद अरुण !
Deleteबहुत ही रोचक पोस्ट लिखी है।जो की पाठक को बांधकर रखती है। पढ़कर मुझे वो दिन याद आ गये जब दुबई में प्रोफ़ेसर ,डॉक्टर ,एक्टर ,विलेन ,कॉमेडियन ,राइटर ,डायरेक्टर ,कादर खान आये थे। और उनसे हमारी मुलाकात हुई थी।वो लम्हात ऐसे थे जैसे हमे जीते जी रास्ट्रीय सम्मान मिल गया हो। उन दिनों मैंने भी मोहब्बत नामा पर कादर खान के नाम एक पोस्ट लिखी थी। ''एक सम्पूर्ण कलाकार कादर खान'' वो मुलाकात अगरचे 1 घंटे की थी,ल;लेकिन आज भी मै उन लम्हात को याद करता हूँ।
ReplyDeleteऐसी यादें हमेशा के लिए दिल में छाप छोड़ जाती हैं.
Deleteसाभार !
बहुत सुन्दर अनुभव रहा हो्गा समझ सकती हूँ।
ReplyDeleteजी हाँ वंदना जी...
Deleteधन्यवाद!
ऐसी शख्सियतें अपनी छाप छोड़ जाती हैं........मुझे बांसुरी बहुत पसंद है ।
ReplyDeleteएक महान इंसान ही एक महान कलाकार बन सकता है ......जहाँ मन में दंभ ने डेरा डाला उसका पतन शुरू हो जाता है ....पंडितजी के विषय में पढ़कर ..उनका स्वाभाव जानकार ..मेरी यह सोच और पुष्ट हो गयी.....आपका संस्मरण और प्रस्तुति दोनों ही बहुत सुन्दर और प्रभापूर्ण लगे ...बधाई शालिनीजी
ReplyDeleteएक महान इंसान ही एक महान कलाकार बन सकता है ......जहाँ मन में दंभ ने डेरा डाला उसका पतन शुरू हो जाता है ....पंडितजी के विषय में पढ़कर ..उनका स्वाभाव जानकार ..मेरी यह सोच और पुष्ट हो गयी.....आपका संस्मरण और प्रस्तुति दोनों ही बहुत सुन्दर और प्रभापूर्ण लगे ...बधाई शालिनीजी
ReplyDeleteमेरे भी एक दोस्त हैं जो कभी कभी बाँसुरी बजाते है ..पर जब भी वो बाँसुरी बजाते हैं मैं और कुछ लोग उनकी तरफ खींचे चले आते है।
ReplyDeleteतो फिर आपका मन तो गोकुल होना ही था, स्वयं पंडित जी जो पधारे थे।
उम्दा पोस्ट।
mai bhi ak basuri badak hun aur aj tk chaurasiya ji ka sanidhy prapt karane ke liye taras rha hun ap mahan hain jo ki apko kuchh plon ke liye unka sanidhy prapt hua
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