बेतरतीब है, बिखरी सी पड़ी है हयात,
चलो आज इसको करीने से सजाया जाए.
घर की हरेक चीज़, हर कोने में फैली हुई हैं यादें तेरी,
दिल की दीवारों पे इन्हें , सिलसिलाबार सजाया जाए.
जिस्म से रूह तलक, गोशे-गोशे पर छपी हैं बातें,
हर्फ-ब-हर्फ़ चुन-चुन के एक अफसाना बनाया जाए.
वो तेरी हर बात जो, दिल को नाग़वार गुज़री,
उन्हीं बातों से आज, अपने शेरों को सजाया जाए .
कहाँ तक संजोते रहें ग़मों को, जो बख्शे तूने ,
उन ग़मों को आज सीने में, अपने दफनाया जाए.
बस्ल-ए-तन्हाई में है कौन, किससे गुफ्तगू करलें.
तन्हाइयों को भी आज, शोर सन्नाटे का सुनाया जाए.
रू-ब-रू आ, कि आँख मुंदने तक तेरा दीदार करें,
नज़र की तिश्नगी को तेरे दीदार से बुझाया जाए.
थम-सी गई है रफ़्तार-ए-जिंदगी, कि मौत दूर खड़ी,
पैगाम जल्द आने का ,कासिद के हाथों भिजवाया जाए.
मुलाक़ात जब भी हो खुद से, कोई गैर जान पड़ता है,
गैरों से पेशतर खुद को, अपना दोस्त बनाया जाए .
कुछ कमी सी है फिज़ा में, कि राग-ए-गुल फीके हैं ,
खून-ए-जिगर देके फूलों को रंगीन बनाया जाए .
वाह शालिनीजी ....बहुत ही सुन्दर ....जैसे हर हर्फ़ तड़पकर भीतर से निकला है .....
ReplyDeleteदिल की तड़प है, लफ़्ज़ों में ढल जाती है
Deleteबगरना हर घड़ी, यही दिल को तडपती है
सरस जी ... बहुत बहुत धन्यवाद !
लफ़्ज़ों में ढल कर ही तड़प बाहर आती है,
Deleteलफ़्ज़ों में ही हाल-ए-दिल बयाँ कर जाती है |
लफ़्ज़ों में बयाँ करने के इस तरीके को,
हर लब से कोई न कोई कहानी फना पाती है |
वाह क्या कहने ....गजब की गज़ल।
ReplyDeleteमेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/11/3.html
dhanyvaad rohit ji!
Deleteवाह शालिनी जी क्या कहना उम्दा माशाल्लाह गज़ब की ग़ज़ल है
ReplyDeletedhanyvaad anant....
Deleteहर्फ़ से हर्फ़ मिलाता रहा ,नज्म मेरी बनती गयी ,की तर्ज़ पर आपने अपने उर्दू गुलदस्ते के फूलों को एक एक करके सजाया ,और सजाते सजाते एक खुबसूरत नज्म बन गयी। मैंने तो आपसे पहले भी कहा था की मेमोरी अटेच रखें।ताकि सब सेव होता रहे।
ReplyDeleteधन्यवाद आमिर जी... आपकी सलाह के लिए धन्यवाद!
Deleteवाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteजिस्म से रूह तलक, गोशे-गोशे पर छपी हैं बातें,
ReplyDeleteहर्फ-ब-हर्फ़ चुन-चुन के एक अफसाना बनाया जाए.
वो तेरी हर बात जो, दिल को नाग़वार गुज़री,
उन्हीं बातों से आज, अपने शेरों को सजाया जाए .
लाजवाब गजल
सादर
धन्यवाद यशवंत
Deleteबेहतरीन ग़ज़ल शालिनी जी, बधाई!
ReplyDeleteधन्यवाद दिनेश जी!
Deleteबेहतरीन ग़ज़ल शालिनी जी, बधाई!
ReplyDeleteवाह बहुत ही खुबसूरत......उर्दू के लफ़्ज़ों का सुन्दर प्रयोग ।
ReplyDeleteधन्यवाद इमरान जी...ज़र्रनावाजी है आपकी ....
Delete
ReplyDeleteकल 02/12/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
Deleteमुलाक़ात जब भी हो खुद से ,कोई गैर जान पड़ता है ,
गैरों से पेशतर खुद को ,अपना दोस्त बनाया जाए .
बढ़िया शैर है शालिनीजी . बशीर बद्र साहब की ये पंक्तियाँ याद आ गईं .
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें ,
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए .
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteगैरों से पेश्त रखुद को अपना दोस्त बनाया जाए ----
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन रचना |
आशा
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अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बहुत ही बेहतरीन गजल है...
ReplyDeleteबहुत ही बढ़ियाँ...
:-)
रु ब रु आ कि आँख मुदने तक तेरा दीदार करें ।
ReplyDeleteनजर की तिश्नगी को तेरे दीदार से बुझाया जाए ।।
शालिनी जी वाकई आप ने तो बहुत ही खूबसूरत गजल हम सब के सामने परोस दी है । तहे दिल से शुक्रिया ।
वो तेरी बात जो सबको नागवार गुज़री ...
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब शेर है इस गज़ल का ... दिल को छूता हुवा ...
Good one .Shaliniji.
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