वर्तमान,
जो है नित्य
अनादि और अनंत,
उस वर्तमान को त्यज,
सदा दौड़ते रहते,
अतीत की परछाइयों के पीछे
या
भावी परिकल्पनाओं में खोए
विमुख
अपने आज से
यादें अतीत की
घेरे रहती
चहुँ ओर .
बार-बार धकेल देतीं
भूत के उस
अंतहीन कुएँ में
जिसका नहीं
कोई ओर-छोर
और ........
जैसे-तैसे
खींच यदि
वापस भी लाएँ
खुद को हम
तो भविष्य
सुनहरे सपनों के
बुनकर जाल
न जाने कितनी
मृगतृष्णाओं में उलझा
भटकने को करता
विवश
अतीत के अन्धकार में
तो कभी
भविष्य के विचार में
भरमाते हम
खो देते हस्तगत
वर्तमान के
मोती अनमोल
कुछ अद्भुत पल
खट्टे-मीठे से
कुछ प्यार भरे
सुकून के क्षण
और बदले में
हाथ क्या आता?
एक मुट्ठी यादों की राख,
कुछ सूखे मुरझाये पत्ते,
कुछ हाथ न आने वाली
स्वप्नों की
रंगीन तितलियाँ
जो पल में ओझल हो जातीं
भरमा कर
बीते और आने वाले
लम्हों में खोए
हम
वर्तमान में कब जीते हैं?
अच्छी रचना
ReplyDeleteधन्यवाद महेंद्र जी ..
Deleteएक गहरे विचार को प्रस्तुत करती कविता बहुत ही प्रभावित और उम्दा लगी.. एक उल्लेखनीय सौच को शलाम।
ReplyDeleteशालिनी जी बधाई स्वीकार करें। :))
रोहितास जी.. रचना पर ध्यान देने के लिए हार्दिक आभार!
Deleteवाह ... बहुत ही बढिया।
ReplyDeleteधन्यवाद सदा जी!
Deleteआज शायद पहली बार ही वर्तमान की तरफ तवज्जोह गयी है,वो भी आपकी रचना पढ़कर। अतीत और भविष्य ने कभी इस और जाने ही ना दिया। इन्ही दोनों की कशमकश में सुनहरा वर्तमान गुजर कर अतीत बनकर रह जाता है।
ReplyDeleteमोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड
बिल्कुल सही बात कही है आमिर जी .... हम वाकई अपने वर्तमान कि उपेक्षा करते रहते हैं..
Deleteरचना पर ध्यान देने के लिए शुक्रिया!
वाकई.....अच्छे खासे वर्तमान का भूत और भविष्य के बीच सैंडविच बना देते हैं...
ReplyDeleteसुन्दर रचना..
सस्नेह
अनु
सैंडविच .... बिल्कुल सही शब्द का इस्तेमाल किया है अनु जी!
Deleteआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 20/11/12 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है
ReplyDeleteधन्यवाद राजेश जी .... 'चर्चा मंच' पर शामिल होना मेरे लिए गौरव की बात है.....
Deleteवाह...वाह.......बिलकुल सही और सटीक ।
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया इमरान जी!
Deleteगहरी भावनाएं छुपाये खूबसूरत ख्यालों में सराबोर उम्दा रचना वाह।
ReplyDeleteहार्दिक आभार अरुण!
Deleteएकदम सही कहा है आपने ,,
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना..
:-)
धन्यवाद रीना जी!
Deleteबेहतरीन ख़याल. सुन्दर रचना.
ReplyDeleteबहुत सच कहा है... हम भूत और भविष्य के चिंतन में वर्तमान को भी गवां देते हैं...बहुत सुंदर रचना...
ReplyDeleteशालिनी जी , आपकी टिप्पणियाँ हमारे लेखन की आंच हैं ,एड़ और उत्प्रेरण बनती हैं .शुक्रिया . बहुत खूब डुबोया अनुभूतियों ने आपकी .आज की आवाज़ है पुकार है तंज है इन शैरों में .
ReplyDeleteव्यतीत और अनागत की परछाइयाँ प्रेत छाया बन वर्तमान पे जहां पसरी रहतीं हैं वहां आदमी जीता कम है मरता ज्यादा है .