बिल्कुल अभी -अभी
एक दस्तक सी सुनी थी
दरवाजे पर
शायद घर के
या फिर दिल के
बदहवास दौडी थी
खोल द्वार देखा तो
कोई न था
दूर - दूर तक
पर हाँ
बिछी थी नरम हरी दूब
सद्य पदांकित
पूछोगे
दूब पर पदचिह्न ?
हाँ
क्योंकि झुके हुए थे
गर्वोन्नत तृण शिर
श्रद्धा नत
पाकर पद स्पर्श
काश!
बिछा होता वहाँ
अभिमान मेरा
चरण धूलि पा
हो जाता पावन
पर नहीं था
मेरे भाग्य में
पद स्पर्श तुम्हारा
क्यों न खोल रखा
द्वार ह्रदय का
क्यों कपाट बंद कर
लीन स्वयं में
जान न पाई
आकर गमन तुम्हारा ......
क्यों न खोल रखा
ReplyDeleteद्वार ह्रदय का
क्यों कपाट बंद कर
लीन स्वयं में
जान न पाई
आकर गमन तुम्हारा ......सुंदर अभिव्यक्ति,,,,,,
RECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का
धन्यवाद धीरेन्द्र जी!
Deleteकाश!
ReplyDeleteबिछा होता वहाँ
अभिमान मेरा
चरण धूलि पा
हो जाता पावन
पर नहीं था
मेरे भाग्य में
पद स्पर्श तुम्हारा .... नज़र आए चिन्ह,वही है आशीष और अभिमान कहीं नहीं
अभिमान छोड़ कर ही उनका आगमन महसूस किया जा सकता है.... पता नहीं कभी हो पायेगा यह य नहीं ??
Deleteधन्यवाद रश्मि जी!
प्रेम में सराबोर सुन्दर सार्थक रचना. वाह
ReplyDeleteहार्दिक आभार अरुण!
Deleteवाह....
ReplyDeleteअद्भुत रचना....
बहुत सुन्दर...
अनु
धन्यवाद अनु जी!
Deleteअभी भी समय है ... दरवाजा खोल के रखो ... आयेंगे फिर जो प्यार करते हैं ...
ReplyDelete:-) धन्यवाद दिगंबर जी!
Deleteहलचल में शामिल करने के लिए शुक्रिया यशवंत जी!
ReplyDeleteप्रभावी रचना ... लाजवाब
ReplyDeleteधन्यवाद विजय जी!
Deleteकाश!
ReplyDeleteबिछा होता वहाँ
अभिमान मेरा
चरण धूलि पा
हो जाता पावन
पर नहीं था
मेरे भाग्य में
पद स्पर्श तुम्हारा
कमाल की पंक्तिय हैं शालिनी जी.
धन्यवाद संतोष जी!
Deleteबहुत सुन्दर शालिनीजी
ReplyDeleteपोस्ट पर ध्यान देने के लिए आभार सरस जी!
Deleteख्याल बहुत सुन्दर है और निभाया भी है आपने उस हेतु बधाई, सादर वन्दे,,,,,,,,,
ReplyDeleteधन्यवाद मदन जी!
Deleteबहुत खूब ..
ReplyDeleteधन्यवाद .......... जी!
Deleteक्यों न खोल रखा
ReplyDeleteद्वार ह्रदय का
क्यों कपाट बंद कर
लीन स्वयं में
जान न पाई
आकर गमन तुम्हारा ......
...बहुत खूब! बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति...
बहुत बहुत धन्यवाद कैलाश शर्मा जी!
Deleteवाह! बहुत ही सुन्दर भावमय प्रस्तुति.
ReplyDeleteआभार,शालिनी जी.
धन्यवाद राकेश जी!
Deleteकाश!
ReplyDeleteबिछा होता वहाँ
अभिमान मेरा
चरण धूलि पा
हो जाता पावन
पर नहीं था
मेरे भाग्य में
पद स्पर्श तुम्हारा
वाह....बहुत ही सुन्दर।
धन्यवाद इमरान जी!
ReplyDeleteक्या बात है कविता और ग़ज़ल एक साथ और एक ही दिन पोस्ट। लगता है दीपावली लिखते लिखते मनायी है।बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteधन्यवाद आमिर.....पर यह पोस्ट पुरानी है.... आज दोबारा अपडेट की थी|
Deleteबहुत ही भावप्रवण और सुंदर अभिव्यक्ति । बधाई !
ReplyDeleteधन्यवाद सुशीला मैम!
Deleteआपकी सशक्त लेखनी और एक भावप्रवण हृदय हृदय से परिचित हुआ। बहुत अच्छा लगा। मेरी शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteधन्यवाद दिनेश जी!
Deleteकोमल भाव लिए बहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDeleteआपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ....
:-)
thanx reena ji...
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteअच्छी रचना
dhanyvaad mahendr ji!
Deleteबहुत सराहनीय प्रस्तुति.बहुत सुंदर बात कही है इन पंक्तियों में. दिल को छू गयी. आभार !
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति .बहुत अद्भुत अहसास.दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये आपको और आपके समस्त पारिवारिक जनो को !
मंगलमय हो आपको दीपो का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..
वाह-वाह क्या बात है सुन्दर अति सुन्दर लाजवाब प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुती |
ReplyDeleteब्लॉग पर की गई सभी टिप्पणियाँ एक जगह कैसे दिखाएँ ?
निरभिमान होने का सुख ,कशिश इस रचना में मुखरित हुई है .
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