1.
आज हौले से मेरा नाम कहीं, तेरे लबों पे चला आया है,
सरसराहट ने हवा की ये पैगाम.हम तलक पहुँचाया है.
याद करके मुझे, तूने कहीं, ठंडी आह भरी है
दरिया के दामन पे बिछी,चांदनी ने ये पैगाम दिया है.
सूरज की तपिश में थी, तेरे जिस्म की हरारत
लिपट के किरणों ने दामन से,तेरा अहसास दिया है .
कल तलक गैर था जो, आज है हमनवां मेरा
तूने न सही, हमने ये हक़ खुद को दिया है
सरसराहटों में हवा की थी
एक मदहोश सी खनक,
भूले से कहीं तूने
मेरा नाम लिया होगा
हिचकियाँ हैं कि
रुकने को तैयार नहीं हैं,
ज़िक्र मेरा कहीं तूने
सरेआम किया होगा .
शाख-ए-गुल लिपट कदमों से
रोकती थी जाने से हमें
शायद जाते - जाते तूने
मुड़ के हमें देख लिया होगा.
पेश कदमी को तो तूने भी
कोशिश हर बार की
हर बार किसी हिचक ने
जुबां को रोक लिया होगा.
आज हौले से मेरा नाम कहीं, तेरे लबों पे चला आया है,
सरसराहट ने हवा की ये पैगाम.हम तलक पहुँचाया है.
याद करके मुझे, तूने कहीं, ठंडी आह भरी है
दरिया के दामन पे बिछी,चांदनी ने ये पैगाम दिया है.
सूरज की तपिश में थी, तेरे जिस्म की हरारत
लिपट के किरणों ने दामन से,तेरा अहसास दिया है .
कल तलक गैर था जो, आज है हमनवां मेरा
तूने न सही, हमने ये हक़ खुद को दिया है
2.
सरसराहटों में हवा की थी
एक मदहोश सी खनक,
भूले से कहीं तूने
मेरा नाम लिया होगा
हिचकियाँ हैं कि
रुकने को तैयार नहीं हैं,
ज़िक्र मेरा कहीं तूने
सरेआम किया होगा .
शाख-ए-गुल लिपट कदमों से
रोकती थी जाने से हमें
शायद जाते - जाते तूने
मुड़ के हमें देख लिया होगा.
पेश कदमी को तो तूने भी
कोशिश हर बार की
हर बार किसी हिचक ने
जुबां को रोक लिया होगा.
हिचकियाँ हैं की रोकने को तैयार नही हैं ,
ReplyDeleteजिक्र मेरा कहीं तूने सरे आम किया होगा।
इस शेर पर तो आपको अवार्ड मिलना चाहिए।
बहुत ही सुन्दर नक्षा खिंचा है, ख़ास कर ये शेर को मैंने कई बार पढ़ा।
धन्यवाद आमिर भाई! आपकी सराहना से हमेशा ही हौंसला अफजाई होती है.
Deleteवाह, बेहतरीन , दिल को छूती नज्में।
ReplyDeleteसादर
देवेंद्र
शिवमेवम् सकलम् जगत,
ब्लॉग पर आने व प्रशंसा कर होंसला बढ़ाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद देवेन्द्र जी !
Deleteमदन जी ...आपके प्रेरणादायक शब्दों के लिए हृदय से आभारी हूँ.
ReplyDeleteबहुत उम्दा खूबशूरत नज्म के लिए ,,,शालिनी जी,,बधाई,,
ReplyDeleterecent post: बात न करो,
dhanyvaad dheerendr ji!
Deleteले लिया है बेखुदी में खुद अपना ही नाम ...
ReplyDeleteक्या तूने कही चुपके से पुकारा है !!
कभी लिखा ऐसा भी मैंने , इन्ही अनुभूतियों से गुजरते :)
बहुत खूब लिखा है आपने वाणी जी...
Deleteसधन्यवाद!
दिल का हर तार छेंड़ इक नया गीत सजाती पंक्तियाँ बेहद लाजवाब सुन्दर अति सुन्दर, बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteधन्यबाद अनंत जी!
Deleteबहुत ही बेहतरीन नज्मे. बहुत बहुत बधाई शालिनी जी इस प्रस्तुति के लिये.
ReplyDeleteहार्दिक आभार रचना जी!
Deleteकल तलक गैर था जो,आज है हमनवां मेरा
ReplyDeleteतूने न सही ,हमने ये हक खुद को दिया है।
बेहतरीन गज़ल नज्म भी खूब लगी ....ये शेर तो काफ़ी प्रभावित करने वाला है
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/12/blog-post.html
प्रेम की पराकाष्ठा है दोनों ही नज्मों में ....
ReplyDeleteकोमल प्रसंगों को धीरे से छेड़ा है ..
आपकी टिप्पणियां सदैव ही प्रेरक होती हैं ..धन्यवाद दिगंबर जी!
Deleteहार्दिक आभार शिखा जी,
ReplyDeleteshaandaar... bhawpurn
ReplyDelete