गुरुर में हो गाफ़िल, कि दिल नवाजी से, साफ़ बचते हो
मसरूफियत है या कि बेरुखी जो हमें, दरकिनार किए रखते हो .
पेशानी पे त्योंरियाँ, तल्खी औ तंज जुबां पे हरदम
ज़माने भर की नाराज़गी, हम पे ही बयाँ करते हो
चार दिन की जिंदगानी में क्यूँकर हज़ार शिकवे- गिले
मुहब्बत से मिला करो , दुश्मन से भी अगर मिलते हो .
इस शहर में न मिलेगा, हम-सा तुम्हें ए दोस्त कोई,
क्यों बेगानों की भीड़ में, दोस्तों का गुमां रखते हो .
बस बच रहा वो ही कि जिसने, ज़रा-सी लचक रखी खुद में
कि टूट जाओगे चटक के जो न , झुकाने का हुनर रखते हो.
हक किसने दिया हुस्न या कि इश्क को मगरूर होने का
बिन एक के दूजे की गुज़र, कैसे-कैसे मजाक करते हो
बहुत ही सुन्दर नज्म है। आपने लॉक लगा दिया वर्ना अपनी पसंद की लाइने कॉपी करके पेस्ट करता। खैर ,ये भी जरुरी है। वर्ना ये सुन्दर नज्मे भी चोरी हो जाएँगी।
ReplyDeleteधन्यवाद आमिर भाई.....
Deleteलाजवाब प्रस्तुती,इस चार दिन की जिन्दगी में यदि प्यार मोहब्बत से रहा जाय तो जीवन सुधर जाय।
ReplyDeleteराजेन्द्र ब्लॉग
वेब मीडिया
भूली -बिसरी यादें
बिल्कुल ठीक कहा राजेन्द्र जी... बहुत बहुत धन्यवाद!
Deletewahh...bahut umda ...Badhai...
ReplyDeletehttp://ehsaasmere.blogspot.in/2012/12/blog-post.html
धन्यवाद सुरेश जी... ब्लॉग पर आने व प्रशंसा कर हौंसला बढ़ाने के लिए!
Deleteबिल्कुल सच कहा आपने ... सार्थकता लिये सशक्त लेखन
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी!
DeleteSo beautiful write !! shalini ji
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
ReplyDeleteहार्दिक आभार!
Delete
ReplyDeleteनववर्ष मंगलमय हो !
अच्छी रचना
बहुत सुंदर
इस शहर में न मिलेगा, हम-सा तुम्हें ए दोस्त कोई,क्यों बेगानों की भीड़ में, दोस्तों का गुमां रखते हो .
धन्यवाद महेंद्र जी... आपको भी नववर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएँ!
Deleteबहुत ही बढ़िया मैम
ReplyDeleteसादर
बहुत बढ़िया गजल,,,,
ReplyDeleteचिरनिद्रा में सोकर खुद,आज बन गई कहानी,
जाते-जाते जगा गई,बेकार नही जायगी कुर्बानी,,,,
recent post : नववर्ष की बधाई
हर शैर फलसफा ,निभने निभाने की बात की है ,
ReplyDeleteऔरों को नहीं खुद को आजमाने की बात की है .