खता प्यार करने की है, मुआफी के तलबगार हैं
खता मुआफ हो, हाँ हम ही गुनाहगार हैं.
कब तुमने हमसे वफाओं का, कोई सौदा किया था,
जफ़ाओं की तिजारत के तेरी, हम ही खताबार हैं.
दिल की गलती कि वो टूटा, क्यों शीशे का बना था
संग-ए-जफा खा के अब, बिखरने को भी तैयार हैं
फितरत है हमारी तो अश्कों में जज्ब होने की,
तल्खियाँ तुम्हारी कब, सख्त इतनी बेशुमार हैं
रकीब खुद ही बन बैठे हैं , जाने कैसे अपने प्यार के
दिल चाहे तुम्हें तो रोकें, कहते कि नाफरमाबरदार है.
लुटा के खुदी को बने बैठें हैं हम फ़कीर,
जमाना समझे है कि अब भी ज़रदार हैं .
प्यार में खता की माफ़ी तोहोनी चाहिए...
ReplyDeleteबहुत ही बढियां गजल....
बेहतरीन....
:-)
सही कहा.......
Deleteधन्यवाद रीना जी
वाह वाह वाह क्या इरशाद फ़रमाया है आपने शायरे मोहतरम.पढ़ कर दिल भी बाग़ बाग़ हो गया.
ReplyDeleteइस बज्मे जहाँ के उम्मीदवार हम भी हैं ,
आप यूँ ही लिखती रहें पढने को बेकरार हम भी हैं.
मोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड
आमिर जी... आपकी तो तारीफ भी शायराना अंदाज़ में होती है... ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया!
Deleteवाह ,,,, बहुत खूब,शालिनी जी,,,,
ReplyDeleteलुटा के खुदी को बने बैठें हैं हम फ़कीर,
जमाना समझे है कि अब भी ज़रदार हैं,,,,,,
RECENT POST LINK...: खता,,,
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धन्यवाद धीरेन्द्र जी..
Deleteमाशाल्ला ऐसे ही लिखते रहिये ... दिल खुश हो गया जी.
ReplyDeleteधन्यवाद रोहितास जी..
Deleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं।
Deletehttp://rohitasghorela.blogspot.com/2012/10/blog-post.html
बहुत सुन्दर गज़ल...
ReplyDeleteअनु
धन्यवाद अनु जी....
Deleteवाह शालिनी जी क्या बात है तहे दिल से दाद कुबूल कीजिये
ReplyDeleteलुटा के खुदी को बने बैठें हैं हम फ़कीर,
जमाना समझे है कि अब भी ज़रदार हैं .
शुक्रिया अरुण जी!
Deleteखताबार - ख़तावार
ReplyDeleteबेहद उम्दा ।
शुक्रिया इमरान जी... वर्तनी सुधार के लिए धन्यवाद !
Deleteवल्लाह
ReplyDeleteधन्यवाद निधि जी!
Deleteपास से गुजर रहा था सौचा आपके ब्लॉग से मिलते हुवे चलूँ .... मछलियों को दाना खिलाया फिर सौचा आपको मेरी नई पोस्ट के बारे में बताता चलूँ ....
ReplyDeletemy recent post :- http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/10/blog-post.html :))
If I disturb you then Sorry !!
धन्यवाद रोहतास जी.... हमारे ब्लॉग पर दर्शन देने का... आपके ब्लॉग पर आए, बहुत अच्छा लगा!
Delete:)) behtareen likhte ho aap:)
ReplyDeleteआपको पसंद आया ... बहुत बहुत धन्यवाद !
Deleteबहुत खूब. सुंदर अशआर है. शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteशुक्रिया रचना जी!
Deleteलुटा के खुदी को बने बैठें हैं हम फ़कीर,
ReplyDeleteजमाना समझे है कि अब भी ज़रदार हैं ... kya baat hai
तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति शालिनी जी - आभार.
ReplyDeleteउम्दा गज़ल,बहुत खूब शलिनी जी ।
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