मुंतज़िर बैठे हैं तेरी राहों में कब से पलकें बिछाए,
रास्ता भूल के कभी तू भी, गाहे बेगाहे आजा.
रास्ता भूल के कभी तू भी, गाहे बेगाहे आजा.
वफाएं तो न थी कभी और न कभी होंगी शायद,
सवाल -ए-रस्म है, जफ़ाओं की रस्म निभाने आजा.
रिसते जख्मों पे चढ़ा जाता है बीतते वख्त का मुलम्मा,
कर कोई तरकीब नई , फिर नया जख्म लगाने आजा .
रुसवाई सरेआम मेरी, भुलाने सी लगी है दुनिया,
फिर कोई इलज़ाम नया, मेरे माथे पे सजाने आजा.
अरसा हुआ जाता है देखे खुद को, भूल चुके हैं शक्ल,
आँखों का अपनी आइना, फिर एक बार दिखाने आजा.
महफ़िल को मेरी वीरां कर छोड़ा है कबसे ,
गैर के रक्स में ही सही,पर शम्मा जलाने आजा .
हमराज़ मेरे, गुनाह -ए - उल्फत की सज़ा,
दे फिर एक बार, अश्कों में डुबोने आजा.
पेशोपश में फिर दिल, जियें कि मर जाएँ,
मरने के इरादे को फौलाद बनाने आजा.
क्यों हम ही तेरी वज़्म से, खाली हाथ लौटें ए 'दिल',
अश्कों की सौगात से, गम की बारात सजाने आजा.
अजी वाह क्या बात उम्दा बेहतरीन सुन्दर एक से बढ़कर एक पंक्तियाँ है वाह बस वाह, ये दो तो बस लाजवाब हैं.
ReplyDeleteरिसते जख्मों पे चढ़ा जाता है बीतते वख्त का मुलम्मा,
कर कोई तरकीब नई , फिर नया जख्म लगाने आजा .
रुसवाई सरेआम मेरी, भुलाने सी लगी है दुनिया,
फिर कोई इलज़ाम नया, मेरे माथे पे सजाने आजा.
तारीफ के लिए शुक्रिया अरुण....
Deleteवाह वाह बहुत खूब तीसरा और चौथा शेर तो बहुत ही उम्दा ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद इमरान जी!
Deleteवाह शालिनी जी....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शेर...
महफ़िल को मेरी वीरां कर छोड़ा है कबसे ,
गैर के रक्स में ही सही,पर शम्मा जलाने आजा ....
ये तो और भी बढ़िया..
पेशोपश में फिर दिल, जियें कि मर जाएँ,
मरने के इरादे को फौलाद बनाने आजा....
लाजवाब सभी के सभी...
अनु
अनु जी.... आपको मेरे शेर पसंद आए ..यह मेरी खुशकिस्मती है... आभार
Deleteरिसते जख्मों पे चढ़ा जाता है बीतते वख्त का मुलम्मा,
ReplyDeleteकर कोई तरकीब नई , फिर नया जख्म लगाने आजा .
सभी बेहतरीन
वंदना जी ...मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है ...
Deleteसाभार
एक एक लफ्ज़ भावों की गूढता हैं
ReplyDeleteरश्मि जी... आपकी प्रशंसा मेरे लिए बहुत प्रेरणादायक है ...बहुत बहुत धन्यवाद!
Deleteधन्यवाद यशवंत जी!
ReplyDeleteधन्यवाद धीरेन्द्र जी!
ReplyDeleteएक ब्लॉग सबका पर अपनी पोस्ट पर आपका कमेन्ट देखा ,जो मुझे यहाँ खिंच लाया.यहाँ आकर तो मै हैरान रह गया ,जिस उर्दू को हमने इतना अरसा पढ़ा ,लिखा.आपकी हर हर नज्म उसमे डूबी हुई है.ऐसा लगता है की आपने उर्दू पर काफी स्टडी की है.बहुत अच्छी प्रस्तुतियां हैं.मेरे दिल को तो छू गई.मै तो आज से ही आपका समर्थक हो गया.वेलकम ......................मरहबा खुश आमदीद.
ReplyDeleteमोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
आमिर जी, बहुत बहुत शुक्रिया....और हाँ,रही उर्दू पे महारत कि बात तो भाईजान हमसे तो उर्दू में अलिफ़ भी नहीं आता पर हाँ ... उर्दू जुबां को सीखने की बहुत तमन्ना है... कहीं भी अटक जाते हैं तो बहुत कोफ़्त होती है..
Deleteफिर तो आपके लिए सबसे ज्यादा आसान ''मोहब्बत नामा '' का कॉलोम ''नग्माते आमिर ''ही रहेगा.इसमें हर हर नज्म के निचे मैंने शब्द अर्थ भी लिखे हैं.आप इन शब्द अर्थ को लिख लें.उम्मीद है की आपको बहुत ज्यादा महारत हासिल हो जाएगी.सब हिंदी में ही हैं.
Deleteआज से आपका ब्लॉग मोहब्बत नामा ब्लोग्स अपडेट्स पर भी अपडेट होता रहेगा.आपका भी स्वागत है.आप भी ज्वाइन कर लीजिये.
ReplyDeleteमोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
ReplyDeleteरुसवाई सरेआम मेरी, भुलाने सी लगी है दुनिया,
फिर कोई इलज़ाम नया, मेरे माथे पे सजाने आजा. wah kya khoob kaha.