महफ़िल में आते ही उसके समां महक सा जाए है
साँसों से जिगर में उतर जाए, ज़िक्र तेरा इत्र गुलाब .
रोशनी में नहला जाए , रौशन जहाँ को कर जाए है
ज़र्रे ज़र्रे को जगमगा जाए , ज़िक्र तेरा जैसे आफताब
हर शिकवा मिट जाए , गिला जल हो जाए है ख़ाक
चटक के जलता है यूँ , ज़िक्र तेरा संदल की आग
रुमानियत सी बिखर गई फिजाओं में दूर तलक
रंगों की बारात सजाए, ज़िक्र तेरा है गुल शादाब
सर से पाँव तक पाकीज़गी में सराबोर कर गया
रूह तक भिगो जाए है , ज़िक्र तेरा गंगा का आब
एक शोखी थी, नजाकत थी,अदब था और अदा थी
ज़िक्र तेरा जैसे उस शोख का नजाकत भरा आदाब
रुमानियत सी बिखर गई फिजाओं में दूर तलक
ReplyDeleteरंगों की बारात सजाए, ज़िक्र तेरा है गुल शादाब
क्या बात है.बहुत खूब लिखा है.
आप भी अपना ब्लॉग बना सकते हैं
धन्यवाद आमिर जी!
Deleteसर से पाँव तक पाकीज़गी में सराबोर कर गया
ReplyDeleteरूह तक भिगो जाए है , ज़िक्र तेरा गंगा का आब
वाह ... बेहतरीन
dhanyvaad sada ji !
Deleteवाह,,,बहुत खूब शालिनी जी,,,क्या बात है,,,,,
ReplyDeleteएक शोखी थी, नजाकत थी,अदब था और अदा थी
ज़िक्र तेरा जैसे उस शोख का नजाकत भरा आदाब,,,,
नवरात्रि की शुभकामनाएं,,,,
RECENT POST ...: यादों की ओढ़नी
dheerender ji, aapko bhi navratri ki shubhkamnayen... prashansa ke liye dhanyvaad!
Deleteवाह वाह...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गजल..
:-)
dhanyvaad reena ji!
Deleteइस गज़ल में उपमेय और उपमान दोनों रिझातें हैं ,चन्दन सी आग दहलाते हैं .सहज भाव ये पंक्तियाँ होठों पे गुनगुनाने लगीं -
ReplyDeleteऐसे चेहरा है तेरा ,जैसे रोशन सवेरा
जिस जगह तू नहीं है ,उस जगह है अन्धेरा ,
तेरी खातिर फ़रिश्ते ,सर पे इलज़ाम लेंगे ,
हुश्न की बात चली तो ,सब तेरा नाम लेंगे .
आँखें नाज़ुक सी कलियाँ ,बातें मिसरी की डलियां ,
होंठ गंगा के साहिल ,जुल्फें जन्नत की गलियाँ
कैसे अब चैन तुझ बैन तेरे बदनाम लेंगे ,
हुस्न की बात चली तो सब तेरा नाम लेंगें ,
चाँद आहें भरेगा ,फूल दिल थाम लेंगे ,
हुस्न की बात चली तो सब तेरा नाम लेंगे .
देखिये मिलान करके देखिये -
सर से पाँव तक पाकीज़गी में सराबोर कर गया
रूह तक भिगो जाए है , ज़िक्र तेरा गंगा का आब
रोशनी में नहला जाए , रौशन जहाँ को कर जाए है
ज़र्रे ज़र्रे को जगमगा जाए , ज़िक्र तेरा जैसे आफताब
वाह.....
ReplyDeleteतेरा ज़िक्र है...या के इत्र है....जब भी करता हूँ..महकता हूँ...बहकता हूँ.....
सुन्दर गज़ल...
अनु
धन्यवाद अनु जी!
Deleteसर से पाँव तक पाकीज़गी में सराबोर कर गया
ReplyDeleteरूह तक भिगो जाए है , ज़िक्र तेरा गंगा का आब
अश'आर की पाकीजगी रूह को भिगो गई, वाह !!!!!!!!!!
अरुण जी, आपका तहे दिल से शुक्रिया.
Deleteशालिनी जी आपकी हर रचना कुछ अलग होती है, पढ़कर शुकून सा मिलता है क्या कहना ये पंक्तियाँ पढ़कर आह निकलती है.
ReplyDeleteसर से पाँव तक पाकीज़गी में सराबोर कर गया
रूह तक भिगो जाए है , ज़िक्र तेरा गंगा का आब
धन्यवाद अरुण.... यह टोह आपका अपनापन है जो इतनी हौंसला अफज़ाई करते हैं.
Deleteआपको ये जानकार ख़ुशी होगी की एक सामूहिक ब्लॉग ''इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड ''शुरू हो चुका है.जिसमे भारतीय ब्लोगर्स का परिचय करवाया जायेगा.और भारतीय ब्लोग्स की साप्ताहिक चर्चा भी होगी.और साथ ही सभी ब्लॉग सदस्यों के ब्लोग्स का अपडेट्स भी होगा.ये सामूहिक ब्लॉग ज्यादा से ज्यादा हिंदी ब्लोग्स का प्रमोशन करेगा.आप भी इसका हिस्सा बने.और आज ही ज्वाइन करें.जल्द ही इसका काम शुरू हो जायेगा.
ReplyDeleteलिंक ये है
http://indians-bloggers.blogspot.com/
बहुत बहुत शुक्रिया इमरान जी.
ReplyDeleteआमिर जी आपका यह प्रयास प्रशंसनीय है..इससे भारतीय ब्लोगर्स को , वोशेष टूर पर नए ब्लोगेर्स को बहुत फायदा होगा...जी हाँ मैंने इसे ज्वाइन भी कर लिया है
ReplyDeleteसधन्यवाद!
लफ्ज़ दर लफ्ज़ गिरह खुलती जाये है
ReplyDeleteदिल के एहसास से ग़ज़ल भूति जाये है
बहुत सुन्दर एहसास व्यक्त किये आपने | बधाई और आभार |
यहाँ भी पधारें और लेखन पसंद आने पर अनुसरण करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page