कितनी ही बार
बना कर मिटाई है
तुम्हारी तस्वीर
शायद तुम ऐसे दिखते होगे
या वैसे
सदा भ्रम में ही रही
कितनी ही बार सुनी है
एक जानी-पहचानी
मगर.... अपरिचित आवाज़
और फिर.....
अनगिनत अनुमान
किसकी होगी यह ध्वनि?
क्या तुम्हारी?
क्या तुम्हीं अक्सर, कानों में
धीरे से फुसफुसाकर
एक अनजान आमंत्रण दे
कर जाते विभोर
कितनी ही बार तुम्हारा
अनछुआ स्पर्श
धीरे से सहला
कर जाता स्पंदित
रस सराबोर
वो ध्वनि, वो तस्वीर, वो स्पर्श
क्या तुम्हारा ही है
या मन है थामे
कोरी कल्पना की डोर
क्यों खींच रखे हैं तुमने
भ्रम के परदे चहुँ ओर
कुछ दीखता, कुछ अनदेखा
धुंधलापन
तोड़ क्यों नहीं देते अब ये भ्रमजाल
देकर दरस कर क्यों नहीं देते
उद्धार !!!
तोड़ क्यों नहीं देते अब ये भ्रमजाल
ReplyDeleteदेकर दरस कर क्यों नहीं देते
उद्धार,,,,,,,
सुंदर अहसासों की प्रस्तुति,,,,,
RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,
धन्यवाद धीरेन्द्र जी!
Deleteएक संक्षिप्त परिचय तस्वीर ब्लॉग लिंक इमेल आईडी के साथ चाहिए , कोई संग्रह प्रकाशित हो तो संक्षिप ज़िक्र और कब से
ReplyDeleteब्लॉग लिख रहे इसका ज़िक्र rasprabha@gmail.com
धन्यवाद रश्मि जी, आपने जो आज्ञा दी है उसे शीघ्रातिशीघ्र पूर्ण करना मेरा सौभाग्य होगा
Deleteबढ़िया है....दरस होगा...उद्धार भी ज़रूर होगा
ReplyDeleteधन्यवाद, डॉक्टर निधि टंडन जी!
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना..
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद, राजपुरोहित जी!
Deleteकितनी ही बार तुम्हारा
ReplyDeleteअनछुआ स्पर्श
धीरे से सहला
कर जाता स्पंदित
BEAUTIFUL LINES WITH EMOTIONS AND DEEP FEELINGS
धन्यवाद रमाकांत जी!
Deleteबहुत सुदर । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteधन्यवाद ।
वाह बहुत सुंदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट "बिहार की स्थापना के 100 वर्ष पर" आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।
ReplyDeleteधन्यवाद प्रेम जी.....
Deleteसुभानाल्लाह.....ऐसे ही परदे के पीछे से लुका छिपी खेलता है वो ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद इमरान जी!
Deleteया मन है थामे
ReplyDeleteकोरी कल्पना कि डोर
क्यों खींच रखे हैं तुमने
भ्रम के परदे चहुँ ओर
कुछ दीखता, कुछ अनदेखा
धुंधलापन
तोड़ क्यों नहीं देते अब ये भ्रमजाल
देकर दरस कर क्यों नहीं देते
उद्धार
बहुत बढ़िया प्रस्तुति है काव्यात्मक व्यंजना .कृपया जहां 'कि 'शब्द प्रयोग है वहां 'की ' कर दें .
.कृपया यहाँ भी पधारें -
वैकल्पिक रोगोपचार का ज़रिया बनेगी डार्क चोकलेट
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/06/blog-post_03.html और यहाँ भी -
साधन भी प्रस्तुत कर रहा है बाज़ार जीरो साइज़ हो जाने के .
गत साठ सालों में छ: इंच बढ़ गया है महिलाओं का कटि प्रदेश (waistline),कमर का घेरा
http://veerubhai1947.blogspot.in/
लीवर डेमेज की वजह बन रही है पैरासीटामोल (acetaminophen)की ओवर डोज़
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
इस साधारण से उपाय को अपनाइए मोटापा घटाइए ram ram bhai
रविवार, 3 जून 2012
http://veerubhai1947.blogspot.in/
बहुत सुदर
ReplyDeleteधन्यवाद!
Deleteक्यों खींच रखे हैं तुमने
ReplyDeleteभ्रम के परदे चहुँ ओर
कुछ दीखता, कुछ अनदेखा
धुंधलापन
तोड़ क्यों नहीं देते अब ये भ्रमजाल
देकर दरस कर क्यों नहीं देते
उद्धार
याद आ गईं ये पंक्तियाँ पढ़ते पढ़ते -कितनी बार द्वार से लौटा छूकर बंद किवाड़ तुम्हारे ..ऐसी स्थितियां होतीं हैं कई मर्तबा ...बढ़िया बिम्ब संजोये हैं आपने .
बहुत बहुत धन्यवाद सर, आपके द्वारा दिए गए सुझाव पर अमल करने का प्रयास करूंगी .
Deletehridaysparshi bhaav ...!!
ReplyDeleteshubhkamnayen.
धन्यवाद अनुपमा जी!
Deleteसुन्दर शालीन भावमय प्रस्तुति.
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी और आनन्दित करती.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा,शालिनी जी.
सुंदर भाव।
ReplyDeleteबहूत सुंदर..
ReplyDeleteसच में ह्रदयस्पर्शी रचना...
शानदार .....
मेरे ब्लॉग पर आपके आने का बहुत बहुत शुक्रिया,शालिनी जी.
ReplyDeleteकई बार वो अनछुआ एहसास उन्ही ही आ-आकर जाता रहता है.. और जब एक दिन टिक जाता है ज़हन में.. तो उद्धार निश्चित होता है..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
सादर
बहुत ही सुन्दर .....शानदार प्रस्तुति....
ReplyDeleteधन्यवाद राजपुरोहित जी!
Deleteउहापोह और एहसास का स्वर
ReplyDeleteधन्यवाद वर्मा जी!
Deleteबहोत अच्छे
ReplyDeleteHindi Dunia Blog (New Blog)
हार्दिक आभार!
Deleteबेहद सुन्दर अभिव्यक्ति..... शुभकामनायें.
ReplyDeleteधन्यवाद संतोष जी!
Delete