गैरत
चाहत, भरोसा या प्यार
करना चाहते गर,जी भर करो .
सपनों में , दिल में या आँखों में बसाओ
हर खुशी बार के उसकी इक ख्वाहिश पे
उसके हंसीं ख्वाबों को सजाओ
अपनी धडकनों का,साँसों का ,
हकदार बनाना चाहो तो बनाओ
पर कोई जज्बातों से खिलवाड़ करे
गैरत पे तुम्हारी वार करे
इस कदर हक देके
खुद को न शर्मसार करो
पर कोई जज्बातों से खिलवाड़ करे
ReplyDeleteगैरत पे तुम्हारी वार करे
इस कदर हक देके
खुद को न शर्मसार करो,,,,,,,,
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,,,,,
MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
धन्यवाद, धीरेन्द्र जी!
Deletebikul sahi aur satik post.
ReplyDeleteधन्यवाद इमरान जी!
Deleteबहुत बढ़िया...................
ReplyDeleteसटीक रचना.....
अनु
धन्यवाद अनु जी!
Deleteधन्यवाद प्रसन्न जी!
ReplyDeleteSach hai ... Apne swabiman ko khud hi khud hi bachana hota hai ... Lajawab rachna ...
ReplyDeleteधन्यवाद दिगंबर जी!
Deleteगैरत को बचा के रखने की सीख देती एक सुन्दर रचना
ReplyDeleteझुकना अच्छी बात है पर इतना भी मत झुको की अपनी ही नज़रो में गिर जाओ
यही सन्देश देना चाहा है आपने
बहुत सुन्दर
धन्यवाद, अंजनी कुमार जी!
Deleteपर कोई जज्बातों से खिलवाड़ करे
ReplyDeleteगैरत पे तुम्हारी वार करे
इस कदर हक देके
खुद को न शर्मसार करो
'गैरत 'बहुत प्यारी रचना है ,'वार' कर लें 'बार' को,
और यहाँ भी दखल देंवें -
ram ram bhai
सोमवार, 28 मई 2012
क्रोनिक फटीग सिंड्रोम का नतीजा है ये ब्रेन फोगीनेस
http://veerubhai1947.blogspot.in/
जी हाँ...स्वाभिमान नहीं छोड़ना चाहिए...किसी भी परिस्थिति में
ReplyDeleteआपसे बिलकुल सहमत हूँ निधि जी, रचना पर ध्यान देने के लिए हार्दिक आभार!
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