Thursday, 3 May 2012

उसका चले जाना

उसका चले जाना 


न जाने कितनी देर तक रही 
हथेलियों में 
उसके हाथो की हरारत 
जब हथेलियों से 
फिसलती हुई 
उसकी उंगलियां 
मेरी उँगलियों  के पोरों पर 
अपनी हलकी थरथराहट छोड़
न जाने कब  
जुदा हो गईं
शाम कि दहलीज पे 
आस को चौखट थामें
करते रहे इंतज़ार 
एक आहट का 
रात भर उनींदा सा रहा दरवाज़ा
पल - पल पलके झपकती 
बेचैन रहीं खिड़कियाँ 


27 comments:

  1. न जाने कब
    जुदा हो गईं
    शाम कि दहलीज पे
    आस को चौखट थामें
    करते रहे इंतज़ार
    एक आहट का
    रात भर उनींदा सा रहा दरवाज़ा
    पल - पल पलके झपकती
    बेचैन रहीं खिड़कियाँ .....

    बेहतरीन अहसासों की सुन्दर रचना.....

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया धीरेन्द्र जी!

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  2. कल 05/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .

    धन्यवाद!

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    Replies
    1. हलचल में शामिल करने के लिए धन्यवाद, यशोदा जी!!

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  3. ऐसी ही है जुदाई की तीस.....और ऐसा ही है इन्तेज़ार का दर्द...........

    सुंदर भाव शालिनी जी.

    अनु

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  4. intezar ki kasak dikhati ye post.

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    1. धन्यवाद, इमरान जी !

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  5. एहसास को बखूबी लिखा है ... सुंदर अभिव्यक्ति

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    1. हार्दिक आभार संगीता जी!

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  6. बेहतरीन कविता

    सादर

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    Replies
    1. धन्यवाद यशवंत जी!

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  7. बड़ी नजाकत से समेटा है भावनाओं को आपने...
    अच्छा लगा, पहली बार आना हुआ..
    शुभकामनाएं..!

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    Replies
    1. मधुरेश जी, मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है ...... प्रशंसा के लिए धन्यवाद!

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  8. उफ़ ... गजब के शब्दों में बाँधा है इस कशिश कों ... लाजवाब ...

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  9. क्या कहूँ आपकी इस रचना के बारे में, शब्द ही नहीं मिल रहे । बेहद उम्दा रचना
    क्या कहूँ आपकी इस रचना के बारे में, शब्द ही नहीं मिल रहे । बेहद उम्दा रचना

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  10. शाम कि दहलीज पे
    आस को चौखट थामें
    करते रहे इंतज़ार
    एक आहट का
    रात भर उनींदा सा रहा दरवाज़ा
    पल - पल पलके झपकती
    बेचैन रहीं खिड़कियाँ
    बहुत खूब। आखिरकार जो आनंद इंतजार के बाद हासिल करने में है उसकी बात की निराली है। बधाई हो आपको।

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  11. नाजूक भावो को बयान करती....
    सुकोमल रचना.....

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  12. "शाम कि दहलीज पे
    आस को चौखट थामें
    करते रहे इंतज़ार
    एक आहट का
    रात भर उनींदा सा रहा दरवाज़ा
    पल - पल पलके झपकती
    बेचैन रहीं खिड़कियाँ "
    वाह ! क्या बिंब उकेरे हैं ! बहुत सुंदर अभिव्यक्‍ति !

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    1. प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार , सुशीला जी !

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  13. First time i stepped in here....beautifully executed...

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    Replies
    1. आपका स्वागत है नूपुर, कविता पर ध्यान देने के लिए शुक्रिया........ यूँ ही आते रहिए!

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  14. मेरी उँगलियों के पोरों पर
    अपनी हलकी थरथराहट छोड़
    न जाने कब
    जुदा हो गईं

    wah gahre bhavon ke sath es rachana me jadu hai ....badhai Shalini ji .

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  15. बहुत प्यारी.............नाज़ुक सी रचना.................

    अनु

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.

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