Saturday 26 May 2012

वो तुम ही तो थे न.....

वो तुम ही तो थे न.....




आज प्रातः ही 
वातायन से भेजी थी तुमने
इक स्वर्णिम किरण
प्रेम- पगे संदेसे के साथ 
हौले से छूकर जो 
जगा गई थी मुझे


उनींदी आखों को मलते हुए  देखा तो 
हाथों में थामे तुम खड़े थे 
अरुणिम पारिजात 
सद्य प्रस्फुटित
किरण-कोंपलों से 
नहा रहा था जग जिसमें
वो अरुणाभ बखेरते 
कर रहे थे मेरी ही प्रतीक्षा 
वो  तुम्हीं तो थे न ......


दूर कहीं मयूर की केकी से
अचानक चौंका दिया था तुमने
तन्द्रा तोड़ देखा तो 
सघन हरितिमा में 
उस  नील-नवल तन में 
वो  तुम्हीं तो थे न ......


प्रकृति के कण कण में
तुम  हो रहे थे भासित 
पक्षियों के कलरव में 
भ्रमर की गुँजार में 
हवा की सरसराहट में
पत्तों की खड़खड़ाहट  में 
सद्य स्नात तृणों की 
भीगी सी पुलक में 
वो मृदु स्नेहिल स्पर्श 
तुम्हारा ही था न ....


अमलतास के पीताभ गुच्छों में 
चलते रहे तुम मेरे साथ-साथ 
फैलाकर अपनी शाख- बाहें 
कर रहे थे मेरा आह्वान 


पर मैं तो मगन थी अपने में ही 
दिनभर के जोड़-घटा,हिसाब-किताब में 
पगली मैं , जान भी न पायी 
अमूल्य पूंजी लुटा बैठी थी 
न देख पायी 
तुम्हारा मुस्कुराना, खिलखिलाना
न ही सुन पाई 
वो तुम्हारा मधुर गुनगुनाना 
हाथों से कैसे फिसल गया 
तुम्हारा वो सलोना रूप 
अब सोचती बारम्बार 
श्याम 
हाँ, वो तुम ही थे ....


चित्र : साभार गूगल







23 comments:

  1. अमलतास के पीताभ गुच्छों में
    चलते रहे तुम मेरे साथ-साथ
    फैलाकर अपनी शाख- बाहें
    कर रहे थे मेरा आह्वान ... अदभुत चित्रण

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    1. प्रयास की सराहना करने के लिए हार्दिक आभार, रश्मि जी!

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  2. बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्‍ति ! बह गए हम भी आपके भावों में ! सच व्यस्तताओं के वीच हम कितना कुछ खो देते हैं!

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    1. सुशीला जी, आपकी सराहना सदैव ही प्रेरणास्पद होती है, हार्दिक आभार!

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  3. गहन भावों की कोमल अभिव्यक्ति
    छायावाद की झलक लिये हुए
    आभार

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    1. रचना पर ध्यान देने के लिए आभार, अंजनी कुमार जी!

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  4. बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  5. बहुत सुंदर कविता । मेरे नए पोस्ट "कबीर" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद।

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  6. प्रकृति के कण कण में
    तुम हो रहे थे भासित
    पक्षियों के कलरव में
    भ्रमर की गुँजार में

    प्रकृति में चिदानंद का अद्भुत स्वरुप का वर्णन ..भाव और अनुभूति का सुन्दर संयोजन ....

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    1. सराहना के लिए धन्यवाद, रमाकांत जी !

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  7. धन्यवाद अमरेन्द्र जी!

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  8. प्रेम की ठंडी बयार बह रही हो जैसे ...छायावादी भोर के रहस्य कों खोलती ...

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    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद, दिगंबर जी!

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  9. सहज भावों को अनुप्राणित करती पोषित करती सी प्रस्तुति पढ़ते पढ़ते याद आ गईं ये पंक्तियाँ कबीर की -
    लाली मेरे लाल की जित देखूं तित लाल ,
    लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल .
    और यहाँ भी दखल देंवें -
    ram ram bhai
    सोमवार, 28 मई 2012
    क्रोनिक फटीग सिंड्रोम का नतीजा है ये ब्रेन फोगीनेस
    http://veerubhai1947.blogspot.in/

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    Replies
    1. हार्दिक आभार, वीरूभाई जी!

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  10. अमलतास के पीताभ गुच्छों में
    चलते रहे तुम मेरे साथ-साथ
    फैलाकर अपनी शाख- बाहें
    कर रहे थे मेरा आह्वान

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,,,,,

    RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,

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    Replies
    1. शुक्रिया धीरेन्द्र जी!

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  11. Replies
    1. धन्यवाद अंकुर जी!

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  12. कोमल भाव युक्त बहुत ही बेहतरीन रचना...
    सुन्दर भावाभिव्यक्ति....

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  13. अति सुन्दर।

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.

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