Wednesday, 24 April 2013

आँखें .


जुदा मुझसे मुझे कर जो गईं आँखें
मेरी पहचान अब बन वो गईं आँखें .

मुहब्बत की कहानी कब से अटकी
रवाँ अश्कों में कर उसको गईं आँखें

न खौफ़ से जमाने के डरीं ज़रा
न डरके ये झुकीं, अड़ तो गईं आँखें

न थी दास्ताँ बड़ी आसाँ बयाँ करनी
सुनाती मुख़्तसर में जो गईं आँखें

पलक अंदाज  नज़रों से हमें देखा
जिगर से रूह तक बस वो गईं आँखें

खुमारी थी,नशा था, सुर्ख डोरों में
बिना मै के , नशे में खो गईं आँखे

34 comments:

  1. वाह वाह वाह वाह बहुत ही दमदार ग़ज़ल क्या कहने नैनों की नजाकत का बहुत ही सुन्दरता से वर्णन किया है आपने. दिली दाद कुबूल फरमाएं.

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया संगीता जी!

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  3. बहुत सुन्दर ...!!

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  4. बहुत अच्छे भाव हैं ग़ज़ल के....आपकी तो मास्टरी है लफ़्ज़ों पर.
    मगर थोडा सा कहीं कहीं अटक जाती है लय...मात्राओं में ज़रा हेर फेर लाजमी है (प्लीस बुरा न मानना )
    सस्नेह
    अनु

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    1. अरे नहीं अनु जी ... ये बात मुझे भी पता है कि मैं बहर में नहीं लिख पाती हूँ ...
      पर सीखने की कोशिश ज़ारी है ... इंशाल्लाह कभी न कभी तो कामयाबी अवश्य मिल जाएगी|
      कमी की ओर इंगित करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!

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  5. खुमारी थी, नशा था, सुर्ख डोरों में
    बिना मै के, नशे में खो गईं आंखें................बहुत सुन्‍दर।

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  6. वो गईं आंखें
    अड़ तो गईं आंखें
    आँखों को केंद्र में रखकर आँखों से ही
    बयां कर दी आपने सारी बातें
    अदभुत
    बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया ज्योति खरे जी !

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  7. बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...बहुत कुछ कह गयी ये आँखें...

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    1. शुक्रिया कैलाश जी !

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  8. Replies
    1. धन्यवाद रविन्द्र जी
      !

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  9. बहुत खूब ... आँखों का कमाल क्या कहने ... मुख़्तसर में ही कह जाती हैं तमाम बातें ...
    बहुत लाजवाब ...

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  10. बहुत ही बेहतरीन खूबसूरत ग़ज़ल.

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  11. आँखों की मार्फ़त कह दी दिल की कही सब बात .बेहतरीन रूपक आँखों का .

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  12. Replies
    1. धन्यवाद अंजू जी !

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  13. आँखों के बहाने जिंदगी के कई अफसाने बयां हो गये......

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    1. शुक्रिया अरुण जी!

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  14. अनु जी की बात से सहमत हूँ........शेर अच्छे हैं बहर में अटकाव सा लगा।

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    1. इमरान जी प्रयास जरी है सुधार हेतु ...धन्यवाद!

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