खत्म अफ़साने हुए न, दास्ताँ चलती रही .
न तेरी आँख में अश्क कम,पुरनम चश्म भी मेरे
रुखसारों पर तेरे मेरे, एक धार सी ढलती रही .
मुहब्बत की दास्ताँ, कैद थी नम पलकों तले
कतरा कतरा आँख से, कहानियाँ पिघलती रहीं
मंजिलों से फासला अपना रहा यूँ उम्र भर
हम कदम बढ़ाते रहे, मंजिल परे हटती रही .
तारे टूट गिरते रहे, छीजता रात का दमन रहा,
ता-शब मेरी सर्द आहों से, चाँदनी जलती रही .
are waaaah bhot khub ...kya kheni waaaaaah
ReplyDeleteधन्यवाद अशोक जी !
Deleteलाज़वाब ग़ज़ल..हरेक शेर बहुत उम्दा...
ReplyDeleteशुक्रिया कैलाश जी!
Deleteवाह वाह ,,,शालिनी जी बहुत सुंदर गजल,,,
ReplyDeleteRECENT POST : प्यार में दर्द है,
धन्यवाद सर!
Deleteसुंदर रचना जीवन में घटित हो रहे समय का
ReplyDeleteसच
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई
धन्यवाद ज्योति खरे जी!
Deleteवाह....
ReplyDeleteहर शेर नर्म ,मुलायम से एहसास लिए....
बहुत सुन्दर ग़ज़ल.
अनु
हार्दिक आभार अनु ...
Deleteबेहतरीन गज़ल
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी
Deletewaah ..lajwab
ReplyDeleteधन्यवाद मानव जी
Deleteएक दूसरे के साथ जुड कर मन की कहानियां सुनाना और दांस्ताएं सुनाना परिपूर्ण प्रेम की अभिव्यक्ति है जहां गहरा प्यार वहां यह संभव। मंजिले कितनी भी परे हटती जाए कोई फर्क पडता नहीं अगर किसी का साथ हो तो। सुंदर।
ReplyDeleteधन्यवाद विजय जी ...
Deletewahh... Lazwaab gazal... Badhai
ReplyDeleteधन्यवाद सुरेश जी ...
Deleteकतरा कतरा आँख से कहानियां पिघलती रहीं ...
ReplyDeleteवाह ... बहुत ही लाजवाब शेर है ...
दिगंबर जी ... बहुत बहुत धन्यवाद!
Deleteachha laga
ReplyDeleteधन्यवाद जी!
Deleteबहुत ही सुन्दर गजल...
ReplyDelete:-)
धन्यवाद रीना
Deleteला -ज़वाब प्रस्तुति .हर अशार ख़ास अंदाज़ और अर्थ पूर्ण .
ReplyDeletebahut bahut dhanyvaad sir
Deleteआज तक बहुत शायरों को पढ़ा
ReplyDeleteजो रवानी आपकी शायरी में है
किसी में नहीं
आपको सादर प्रणाम
bahut bahut shukriya vivek ji
Delete