अनुभूतियाँ, जज़्बात, भावनाएँ.... बहुत मुश्किल होता है इन्हें कलमबद्ध करना .. कहीं शब्द साथ छोड़ देते हैं तो कहीं एकक अनजाना भय अपनी गिरफ़्त में जकड़ लेता है .... फिर भी अपने जज्बातों को शब्द देने की एक छोटी सी कोशिश है ... 'मेरी क़लम, मेरे जज़्बात' |
रिश्ते ... गीली मिट्टी से समय के चाक पर धरे गढे जाते हैं बहुत प्यार से अनुभव की उँगलियों से आकार पाते भीतर - भीतर भावों से सहार पाते गढे जाते हैं रिश्ते घर-परिवार के आवे में पकते सौंधी सी महक फैलाते धीमे-धीमे पकते जाते हैं रिश्ते .....
और फिर पके हुये रिश्ते अचानक ही ज़ोर से लगी ठोकर से टूट जाते हैं ... बिखर जाते हैं पकी हुई मिट्टी होती है सख्त इतनी कि लाख जतन से भी जुड़ नहीं पाती ...
रिश्ते बनने की प्रक्रिया बडी नाजुक भी और कठोर भी। किसी का किसी से किस रूप में कौनसा रिश्ता बनेगा पता भी नहीं चलता पर रिश्ता मात्र बन जाता है। किसी से जुडने के लिए सालों लगेंगे और किसी से जुडाव एक क्षण में भी। रिश्तों की गढने की प्रक्रियां आपके द्वारा बताई कसौटियों से बडी ताकतवर बनती है। सहज और सुंदर कविता।
आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .....
ReplyDeleteऔर फिर
पके हुये रिश्ते
अचानक ही
ज़ोर से लगी ठोकर से
टूट जाते हैं ...
बिखर जाते हैं
पकी हुई मिट्टी
होती है सख्त इतनी
कि
लाख जतन से भी
जुड़ नहीं पाती ...
बहुत सुन्दर संगीता जी ... आपने तो पूरी कर दी कविता!
Deleteबिलकुल सही बात लिखी है आपने.
ReplyDeleteधन्यवाद निहार रंजन जी !
Deleteबड़े नाज़ुक होते हैं रिश्ते....
ReplyDeleteएक बार पकने के बाद...गर टूट गए तो न मिट्टी में मिल पाते हैं न जोड़े जाते हैं..
सुन्दर रचना..
अनु
क्या बात कही है अनु जी ..वाह !
Deleteबहुत ही शानदार..... हाँ यूँ ही वक़्त मजबूत करता है इन्हें।
ReplyDeleteघर परिवार के आवे में पकते हैं .............. वाह
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ... बेहतरीन अभिव्यक्ति
रिश्ते बनने की प्रक्रिया बडी नाजुक भी और कठोर भी। किसी का किसी से किस रूप में कौनसा रिश्ता बनेगा पता भी नहीं चलता पर रिश्ता मात्र बन जाता है। किसी से जुडने के लिए सालों लगेंगे और किसी से जुडाव एक क्षण में भी। रिश्तों की गढने की प्रक्रियां आपके द्वारा बताई कसौटियों से बडी ताकतवर बनती है। सहज और सुंदर कविता।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बात कही है विजय जी ... ब्लॉग पर पधारने के लिए आभार!
Deletekya bat hai waaaaah....
ReplyDeleteधन्यवाद अशोक जी !
Deleteवाह!!! बहुत बढ़िया | आनंदमय | रिश्तों की बहुत सटीक परिभाषा बतलाई आपने | आभार
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
वाह !!! बहुत बढ़िया सुंदर प्रस्तुति,शालिनी जी,,,
ReplyDeleteRecent Post : अमन के लिए.
सहज ही पकने वाले रिश्ते ... लंबे समय तक कायम रहते हैं ...
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण लेखन ...