अनुभूतियाँ, जज़्बात, भावनाएँ.... बहुत मुश्किल होता है इन्हें कलमबद्ध करना .. कहीं शब्द साथ छोड़ देते हैं तो कहीं एकक अनजाना भय अपनी गिरफ़्त में जकड़ लेता है .... फिर भी अपने जज्बातों को शब्द देने की एक छोटी सी कोशिश है ... 'मेरी क़लम, मेरे जज़्बात' |
जो मुरली अधरान धरै फिरि कोउ सखी संग बोलत नाहीं| बांसुरिया संग डाह करै सखि, आह भरै पर रोवत नाहीं| बेकल हो सुध वे बिसरा, दिन-रात जलै अरु सोवत नाहीं| मोहक मोहन को छवि सुन्दर, देख हिया कब डोलत नाहीं|
मोहन की छवि देख हृदय का डोलना सुंदर। बांसुरी के प्रति कृष्ण का प्रेम और उसके प्रति ईर्ष्या भाव पैदा होकर भी रोना नहीं केवल आह भरना चित्रमय भावना प्रकट करता है।
आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.
बहुत बेहतरीन सुंदर सवैया छंद ,,,
ReplyDeleteRECENT POST: मधुशाला,
बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteमोहन की छवि देख हृदय का डोलना सुंदर। बांसुरी के प्रति कृष्ण का प्रेम और उसके प्रति ईर्ष्या भाव पैदा होकर भी रोना नहीं केवल आह भरना चित्रमय भावना प्रकट करता है।
ReplyDeleteधन्यवाद विजय जी
Deleteसुन्दर सवैया |
ReplyDeletesundar doha........
ReplyDeleteमोहित कर दिया इन पंक्तियों ने
ReplyDeleteबहुत खूब ... मन तो डोलना ही है कान्हा की इस मूरत को देख के ...
ReplyDeleteलाजवाब ...
मुरली संग डाह का मनोरम दृश्य प्रस्तुत हुआ है.बधाई.क्या बेकल को व्याकुल और दिन रात को दिन रैन में प्रतिस्थापित किया जा सकता है ?
ReplyDelete