Friday, 24 May 2013

अपनी गलती कब मानत है|


दुर्मिल सवैया लिखने का प्रथम प्रयास ..... 


हर बार लरै तकरार करै अपनी गलती कब मानत है|
छिन में छिन जात जिया छलिया छलके सगरे गुर जानत है|
नहिं लाज हया उनको तनि नैन कटारि हिया पर मारत है|
सखि ऐसन ढीठ पिया पर क्यों तन मुग्ध हुआ हिय हारत है|

18 comments:

  1. अनुपम भाव संयोजन ...

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  2. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(25-5-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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    1. धन्यवाद वंदना जी ...

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अरुणिमा सिन्हा को सलाम - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. लाजवाब अभिव्यक्ति | बहुत सुन्दर | आभार

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  5. बहुत सुंदर अच्छा प्रयास ,,,शुभकामनाए ,,,,

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  6. बहुत सुन्दर ....गेयता लिए हुए ....!!

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  7. sacchi bat ....galti karnewala apni galti kab maanta hai .....

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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...आभार.

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  9. क्या बात है सवैये वगैरह अब कहाँ पढने को मिलते है इस प्रयास पर शुभकामनायें.........आगे भी लिखती रहें।

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  10. लाजवाब.. बेहतरीन लिखा है आपने....

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  11. बहुत सुन्दर दमदार प्रस्तुति के लिए धन्यवाद ...

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  12. bahut sunder shalini ji aapka pratham pryaas

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  13. वाह ... इस मोहक सवैयांके मजे ही आ गए ...
    बहुत लाजवाब ...

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  14. प्रथम प्रयास में आपने गणों की आवृतियों को बहुत ठीक से निभाया है। बधाई।
    मेरे ब्लॉगपर भी आयें। पसंद आने पर शामिल होकर अपना स्नेह अवश्य दें।

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.

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