अपनी गलती कब मानत है|
दुर्मिल सवैया लिखने का प्रथम प्रयास .....
हर बार लरै तकरार करै अपनी गलती कब मानत है|
छिन में छिन जात जिया छलिया छलके सगरे गुर जानत है|
नहिं लाज हया उनको तनि नैन कटारि हिया पर मारत है|
सखि ऐसन ढीठ पिया पर क्यों तन मुग्ध हुआ हिय हारत है|
अनुपम भाव संयोजन ...
ReplyDeleteधन्यवाद सदा जी !
Deleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(25-5-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
धन्यवाद वंदना जी ...
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अरुणिमा सिन्हा को सलाम - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteलाजवाब अभिव्यक्ति | बहुत सुन्दर | आभार
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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बहुत सुंदर अच्छा प्रयास ,,,शुभकामनाए ,,,,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ....गेयता लिए हुए ....!!
ReplyDeletesacchi bat ....galti karnewala apni galti kab maanta hai .....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...आभार.
ReplyDeleteक्या बात है सवैये वगैरह अब कहाँ पढने को मिलते है इस प्रयास पर शुभकामनायें.........आगे भी लिखती रहें।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...
ReplyDeleteलाजवाब.. बेहतरीन लिखा है आपने....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दमदार प्रस्तुति के लिए धन्यवाद ...
ReplyDeletebahut sunder shalini ji aapka pratham pryaas
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteहिन्दी तकनीकी क्षेत्र की अचंम्भित करने वाली जानकारियॉ प्राप्त करने के लिये एक बार अवश्य पधारें
टिप्पणी के रूप में मार्गदर्शन प्रदान करने के साथ साथ पर अनुसरण कर अनुग्रहित करें MY BIG GUIDE
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वाह ... इस मोहक सवैयांके मजे ही आ गए ...
ReplyDeleteबहुत लाजवाब ...
प्रथम प्रयास में आपने गणों की आवृतियों को बहुत ठीक से निभाया है। बधाई।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉगपर भी आयें। पसंद आने पर शामिल होकर अपना स्नेह अवश्य दें।