दिल के रिश्ते
बड़े अजीब से होते हैं
रिश्ते दिल के
करीब होकर भी
कोई तो
पास नहीं होता
तो दूर होके भी
कुछ
दिल से जुड़े होते हैं.
कभी नामालूम-सी
दीवारें खिचीं होती है
दरम्यां,
कभी दीवारों के परे भी
रिश्ते पनप रहे होते हैं.
गलतफहमी है कि सिर्फ
जन्म से
वजूद में आते हैं,
खून से बावस्ता
नहीं होते रिश्ते,
विश्वास की
कच्ची डोर से बंधे होते हैं.
मज़बूत इतने कि
क़यामत भी आ जाए तो
जुम्बिश न पड़े,
नाज़ुक इस कदर कि
हल्की सी ठोकर से भी
बिखरे पड़े होते हैं.
तितलियों के परों-से
रंगीन औ नाजुक,
सफ़ेद दामन-से पाक
हाथ से जो छू लो तो
पल में मैले होते हैं ..
अच्छा लगता है
अच्छा लगता है
जब
अपना न होकर भी
अपना सा लगे .....
जब कोई
पल दो पल
पास ठहर
पूछ ले
हाल-ए-दिल
उसकी अनसुनी, अनजानी सी
आवाज़ भी
अपनी सी लगे ......
खुशियों में शामिल रहे जो
खिलखिलाहट की तरह
और गम में
जो अपना साया-सा लगे.....
न हमसफ़र,
न हमनवां अपना,
दूर होने पर भी
उसके
नजदीकियों का
हौंसला - सा लगे .....
हाथ बढ़ाया तो
थाम लेगा ज़रूर
लड़खड़ाने से भी अपने
अब कोई डर न लगे ...
बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteदोनों ही रचनाएँ मन को छूती हुई.
अनु
दिल के रिश्ते सही में अजीब होते है,कुछ के पास होते हुए भी हम दूर रहते है जबकि कोई दूर है फिर भी वो हमारे दिल के करीब होता है।हाले दिल की बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण।
ReplyDeleteजो दिल के करीब रहे वही अपना है। दिल के रिश्ते होते ही अजीब है,दिल को छूने वाली रचनायें।
ReplyDeleteखून से बावस्ता
ReplyDeleteनहीं होते रिश्ते,
विश्वास की
कच्ची डोर से बंधे होते हैं.
विशवास की डोर तो बड़ी पक्की होती है।
खुशियों में शामिल रहे जो
खिलखिलाहट की तरह
और गम में
जो अपना साया-सा लगे.....
पर यहाँ खुशियों में शामिल होने और गम में तन्हां छोड़ने का ज्यादा रिवाज़ है।
दोनों की रचनाएँ बेहद सुन्दर और दिल को छु जाने वाली हैं।
रिश्तों का ये खूबसूरत बेजोड़ तारम्य देखते ही बनता है, आनंदित करती रचना ढेरों बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteसही कहा.......बहुत ही अच्छी लगी पोस्ट..........कई बार अपने भी पराये से लगते हैं और पराये अपने हो जाते हैं ।
ReplyDeleteसच है रिश्ते ऐसे ही होते हैं ...
ReplyDeleteनाज़ुक से ... नम से गुज़रती नज्में ...
दोनों ही रचनाये बेहतरीन रची है आपने शालिनी जी
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