रात की दहलीज़ पर बैठ, करते रहे इन्तेज़ार,
बेज़ुबान चाँद की खामोश नज़र, करती रही बेक़रार.
सर्द सितारों की नज़रें भी, डबडबाने-सी लगी थी,
पलकें भी न झपकी हमने, न जाने किस खुमार में.
फलक के तारे भी कम पड़ गए गिनने को,
रात ही क्या, उम्र गुज़र गई, इस इन्तेज़ार में.
सामने तुम थे मगर, वो कौन से ताले जड़े थे,
होंठ न हिल भी पाए, मुहब्बत के इज़हार में.
कभी दरम्यां आ गया, मीलों का फासला,
कभी दो कदम ही दरम्यां थे बस, तेरे दीदार में.
आँख नम भी न हुई उसकी, सुन दास्ताँ मेरी.
पुरनम थे चश्म सुन के जिसे, सारी कायनात के
दूर से देखते रहे मेरा जनाज़ा, इत्मीनान से
तुझसे तो नर्मदिल हैं, संग मेरी मज़ार के.
बरस भी न पाए जम के, आहों के बादल ,
आँखों में घुमड़ के रह गए, बादल गुबार के.
वाह.....
ReplyDeleteलाजवाब शेर कहे हैं शालिनी जी...
बढ़िया गज़ल.
अनु
धन्यवाद अनु... आपकी प्रशंसा मेरे लिए अनमोल है :-)
Deleteबहुत ही अच्छी कविता | बेजुबान चाँद और डबडबाते तारे दिल में उतर गए और नज़्म बन गए |
ReplyDeleteधन्यवाद जॉनी...
Deleteवाह ,,,बहुत शानदार सुंदर गजल,,,शालिनी जी बधाई
ReplyDeleterecent post: वह सुनयना थी,
हार्दिक आभार धीरेन्द्र जी!
Deleteबेहतरीन ...सभी शेर एक से बढ़कर एक ...!
ReplyDeletedhanyvaad saras ji!
Deleteबहुत खूब .. सामने तुम थे मगर ...
ReplyDeleteउनके आते ही ताले जड़ जाते हैं जुबां पे ... यही तो मार है ... बोला भी नहीं जाता छुपाया भी नहीं जाता ...
बस ..यही तो समस्या है .... बहुत बहुत धन्यवाद!
Deleteक्या शानदार ग़ज़ल प्रस्तुत किये शालिनी जी,बहुत ही सुंदर।आपको शायद मालूम ही चल गया होगा की हमारे प्रिय मित्र आमिर भाई ने अपने ब्लोगों को किसी कारण ब्लॉग जगत के लिए अनुपलब्ध कर दिए हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद राजेन्द्र जी !
Deleteबहुत खूब सूरत अंदाज़ .अर्थ और विचार की सशक्त भावाभिव्यक्ति हुई है विरह विदग्ध रचना में .
ReplyDeleteएक बालकाना ( बच्चों वाला )शैर :
हमने उनकी याद में रो रो के टब भर दिए ,
वो आये और नहा के चल दिए .
ये कहते ,वो कहते ,जो यार आता -
भई !सब कहने की बातें हैं ,
कुछ भी न कहा जाता -
जब यार आता .
कभी दरमियाँ आ गया मीलों का फासला ,
ReplyDeleteकभी दो कदम ही दरमियाँ थे बस ,तेरे दीदार में।
मेरी कैफियत इनको इस तरह बयां करती है ,
आज दरमियाँ आ गया मीलों का फासला ,
कल तक तो दो कदम ही दरमियाँ थे बस ,तेरे दीदार में।
दूर से देखते रहे..............वाह ! वाह !
ReplyDeleteदाद कबूल करें ।
बहुत प्यारी ग़ज़ल ... जैसे सितारों से टंकी हुई चुनर झिलमिला रही हो !
ReplyDeleteशालिनी जी ! आज आपको ढूँढ ही लिया ! पहले एक-आध बार ढूँढने की कोशिश की, मगर आप मिली ही नहीं !:)
बहुत सुन्दर शव्दों से सजी है आपकी गजल
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