Monday, 21 January 2013

अक्सर ........


अक्सर तुझे देख के हम, नज़रें फेर लेते हैं, 
कि कहीं इन आँखों में, तू मुहब्बत न पढ़ ले .

बात करने से भी तुझसे, अक्सर कतराते हैं. 
आवाज़ की लरजिश कहीं, अफ़साने न गढ़ दे .

तेवर दिखाते हैं, त्योरियां चढ़ाये रहते हैं,
हया रुखसार पे छा के, कहीं राज़ बयां न कर दे.

ज़िक्र तेरा चलते ही महफ़िल में, हम जाम उठा लेते हैं. 
कि कदमों के बहकने को. नशे से परदे में पोशीदा कर दें 

तन्हाई से घबरा के अक्सर, बज़्म सजा लेते हैं ,
तेरी यादें आ आकर कहीं, हमको दीवाना न कर दें .


30 comments:

  1. अक्सर तुझे देख के हम, नजरे फेर लेते है,

    अतिसुन्दर,आँखें तो मोहब्बत की आईना होती है।

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    1. धन्यवाद राजेन्द्र जी ...

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  2. क्या बात है ... सच कहा बात करने से ऐसे में कतराना ही अच्छा है ...
    वो नज़्म याद हो आई जगजीत जी की ... बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी ...

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    1. शुक्रिया दिगंबर जी

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  3. बहुत कमाल का लिख दिया है आपने |बधाई

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    1. हार्दिक आभार जय कृष्ण जी...

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  4. wah kya bat hai shalini ji gahre bhavon ke sath hr sher lajbab lga

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    1. नवीन जी , बहुत बहुत शुक्रिया!

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  5. Replies
    1. धन्यवाद शास्त्री जी

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  6. वाह शालिनीजी ...आपका यह अंदाज़ भी निहायत खूबसूरत लगा ....!.

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    1. आपको पसंद आया,,हमारा लिखना सफल हुआ...आभार!

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  7. बहुत खूब..........नजाकत भरी ।

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    1. धन्यवाद इमरान जी :-)

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  8. खुबसुरत फोटो और आपके लेखनी का जबाब नहीँ बहुत अच्छा
    मोबाईल वर्ल्ड : Which can run mobile deviceenabling the Free Inter...: कौन सा मोबाइल उपकरण चला सकते हैँ फ्री इन्टरनेट फ्री इन्टरनेट मोबाइल से चलाने की बात करे तो सबसे पहला ...

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  9. बहुत बहुत धन्यवाद प्रदीप जी!

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  10. बहुत खूब हैं अशआर पोस्ट के .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .

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  11. Wah Shalini ji kya likhahai apne......bahut hi behtreen

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  12. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है... शालिनी जी !
    ~सादर!!!

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  13. वाह .बहुत ही प्रभावशाली अभिव्यक्ति. हार्दिक आभार .

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  14. खूब कही..... बेहतरीन अभिव्यक्ति .....

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