Wednesday 14 November 2012

बदनाम वफाएं




कब मेरी बदनाम वफाओं ने, तुम्हें इल्ज़ाम दिया है,
ये तेरी ही जफ़ाएँ हैं  जो, हंगामा मचा देती हैं.

दुनिया भी शातिर बड़ी कि धुआँ उठते देख, 
आतिश-ए-इश्क  की अफवाहें फैला देती है.

माहिर है बड़ी दुनिया, गढ़ने में नए अफ़साने,
हर बात का रुख अपने ही हिसाब से घुमा देती है .

भेजे भी न गए हमसे, जो पैगाम कभी तुम तक,
मजमून उन लिफाफों के, बतफ़सील बता देती है .

खताबार हो कोई  और इलज़ाम किसी पे 
खुद अपने ही कायदे नए , हर रोज बना लेती है  

खाक कर दे न जिस्म,  कही खलिश दिल की 
भीतर से तो ये तपिश , दिन-रात जला देती  है ......










17 comments:

  1. बहुत जबरदस्त लिखा है। लेकिन आखरी 2 शेर में ''हर रोज बना लेती है ,''दिन रात जला देती है। होता तो नज्म के अशआर बराबर मिल जाते। खैर ,फिर भी नज्म बहुत अच्छी है।

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  2. धन्यवाद आमिर भाई, आपके सुझाव पर अमल कर लिया है..

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  3. बहुत खूब! बेहतरीन रचना...

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  4. Replies
    1. धीरेन्द्र जी .आपका बाहु बहुत शुक्रिया!

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  5. माहिर है बड़ी दुनिया, गढ़ने में नये अफसाने ...
    बहुत खूब।

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  6. यशवंत जी ..हलचल में शामिल करने का शुक्रिया!

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  7. क्या कहने ...
    बहुत ही बढियां गजल लिखा है..
    अति सुन्दर...
    :-)

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  8. bahut hi sundar rachana likhi hai ap ne badhai shalini ji

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    1. नवीन जी, प्रशंसा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!

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  9. वाह....
    बेहतरीन गज़ल....
    हर शेर लाजवाब है..

    अनु

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    1. अनु जी, तारीफ़ के लिए बहुत शुक्रिया !

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  10. बहुत खूब.....चौथा शेर सबसे बढ़िया लगा।

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