Friday 21 September 2012

गुनाहगार


हज़ार शिकवे तेरे , बेबुनियाद सी शिकायतें
सिर झुकाए सुनते रहे हम, गुनाहगार-से |
काश! दिल में न रख कह देते अपने भी मन की,
तो यूँ न सुलगते भीतर ही भीतर , अंगार-से |

पहल तुम्हारी थी, मुहब्बत  का जो यकीं दिलाया था, 
फिर बेरुखी से हाथ झटक, दामन भी तुमने छुडाया था|
खुदा  बन  के  तुम  फरमान  दिए  जाते  थे
बुत  बन  के  हम खड़े  थे, तेरे  हर  इलज़ाम  पे|

हलफ उठाने को भी थे राज़ी कि मान जाओ तुम  
इस बार जो बिछड़े तो किसी सूरत , जी न पाएंगे 
यकीं तुम्हें न था कि पलट के जाँचते थे तुम 
जान कितनी बची है बाकी,  तेरे जाँ- निसार में   


20 comments:

  1. बेहतरीन बहुत उम्दा रचना, बहुत-२ बधाई

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  2. खुदा बन के तुम फरमान दिए जाते थे
    बुत बन के हम खड़े थे, तेरे हर इलज़ाम पे|

    वाह....बहुत ही उम्दा....शानदार ।

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  3. बहुत बहुत धन्यवाद, यशोदा जी.... हलचल में शामिल करने के लिए.

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  4. सुन्दर,कोमल अहसास लिए
    भावपूर्ण रचना..
    खुदा बन के तुम फरमान दिए जाते थे
    बुत बन के हम खड़े थे, तेरे हर इलज़ाम पे|
    बहुत बढ़िया..
    :-)

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    1. हौंसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया रीना जी!

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  5. बहुत ही खूबसूरत कविता |शालिनी जी ब्लॉग पर आने हेतु आभार |

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    1. धन्यवाद जयकृष्ण जी.... आपके ब्लॉग पर आना मेरा सौभाग्य है...बहुत कुछ सीखने को मिलाता है आपसे..
      साभार

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  6. हलफ उठाने को भी थे राज़ी कि मान जाओ तुम
    इस बार जो बिछड़े तो किसी सूरत , जी न पाएंगे
    यकीं तुम्हें न था कि पलट के जाँचते थे तुम
    जान कितनी बची है बाकी, तेरे जाँ- निसार में

    बहुरत खूब ... इतने बेदर्द है वो .. पर हम हैं की प्यार किये जाते हैं ...
    लाजवाब ...

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    1. धन्यवाद दिगंबर जी!

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  7. प्यार में मिले दर्द को बखूबी उकेरा है ... भाव प्रवण रचना

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    1. आपके प्रेरणादायक शब्दों से सदैव ही हौंसला मिलाता है..धन्यवाद संगीता जी!

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  8. बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
    और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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    1. ब्लॉग पर आने व हौंसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया मदन जी!

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  9. हृदय की वेदना को प्रस्तुत करती सुंदर रचना |
    मेरी नई पोस्ट:-
    ♥♥*चाहो मुझे इतना*♥♥

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    1. धन्यवाद प्रदीप जी!

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  10. खुदा बन के तुम फरमान दिए जाते थे
    बुत बन के हम खड़े थे, तेरे हर इलज़ाम पे|

    बहुत उम्दा बात कही आपने ।

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