बेवजह ही तुझ पे यकीन, हम किए जाते हैं .
इंतज़ार का दीया भी, बुझ चला है अब तो
ये तो हम हैं जो बुझ- बुझ के भी जले जाते हैं .
आस की डोर है जो टूट के भी छूटती ही नहीं
साँस की डोर पकड़े, मर-मर के जिए जाते हैं.
सुना था दर से तेरे कोई लौटता नहीं खाली
खाली दामन, और अश्क आँखों में लिए जाते हैं
वाह शालिनी जी क्या बात है उम्दा रचना, बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteधन्यवाद अरुण!
Deleteआपका सदैव स्वागत है शालिनी जी
Deleteबढ़िया गज़ल शालिनी....
ReplyDeleteदर्द भरे एहसास...
अनु
दर्द होता है तो अहसास होता है कि अहसास है तो दर्द होता है..... पता नहीं... धन्यवाद अनु!
Deleteदर्दभरे अहसास व्यक्त करती
ReplyDeleteसंवेदनशील रचना...
भावनाओं की कोमलतम अभिव्यक्ति...
.................................
हार्दिक आभार रीना!
Deletebhawbhni.....
ReplyDeleteधन्यवाद मृदुला जी!
Deleteबहुत खूब...२ और ४ शेर सबसे अच्छा लगा ।
ReplyDeleteधन्यवाद इमरान जी.
Deletehttp://thehinduvoice.blogspot.in/
ReplyDeleteशालीन जी आपकी कलम से शब्दों कै मोती नीकलते हैं
प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार व्यक्त करती हूँ ...धन्यवाद!
Deleteबेहतरीन लिखी हैं मैम!
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद यशवंत जी!
Deleteइंतज़ार का दीया भी, बुझ चला है अब तो
ReplyDeleteये तो हम हैं जो बुझ- बुझ के भी जले जाते हैं .
वाह .. लाजवाब शेर .. खुद जलना पढता है इंतज़ार में अक्सर ...
भाव पूर्ण लेखन ...
कल 20/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
सुंदर शब्दों में जज्बातोँ को उकेरा......बेहतरीन रचना
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