Sunday, 16 September 2012

प्रतीक्षारत


न मालूम
कितने संकेत,
कितने सन्देश,
लिख भेजे तुम्हें
कभी हवा के परों पर
कभी सागर  की लहरों पर .
कभी सूरज कि किरणों को ,
चाँद की  चांदनी में भिगो .
कभी तितलियों के पंखों से रंग समेट,
इंद्र धनुष की पालकी पर चढ़ा.
ह्रदय का हर अनकहा  भाव
पल-पल डूबती उतराती आस.
लिखा था  मूक मन का  हर मौन
आँखों से मोती सहेजसंवारी कथा
भेजा था हर संदेस इस विश्वास से
कभी तो पहुंचेगा तुम तक
समझ पाओगे तुम, मेरी व्यथा
पर न मालूमकहाँ हुए विलीन
सन्देश मेरे
लहरों के जल में घुले
या हवा के झोंकों में बहे
रात की कालिमा में जा मिले
या रंग बन धरा पर बिखर गए
न पहुँच पाए तुम तक
पर आज भी मैं
प्रतीक्षारत


11 comments:

  1. कमाल है!
    चुन-चुन कर शब्दों का आपने प्रयोग किया और क्या सुंदर संदेश देती रचना है
    लाजवाब!!!

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  2. प्रतीक्षित संवाद खुद से ... अदभुत

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    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद रश्मि जी!

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  3. मत यकीन करो इन बेमुरव्वत संदेशवाहकों का.....
    कौन जाने जलते हों तुमसे??
    खुद ही कह दो न जाकर....जानती हो, उसे भी इन्तेज़ार है तुम्हारा....
    :-)
    अनु

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    Replies
    1. सही कहा अनु जी..... अब तो स्पीड पोस्ट पर ही यकीन करना पड़ेगा... :-)

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  4. सार्थक सृजन , बधाई.

    कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर भी पधारें , आभारी होऊंगा.

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  5. वाह...बहुत खूब।

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    Replies
    1. शुक्रिया इमरान जी!

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  6. कभी कभी संदेशे लेता ही नहीं है दूसरा ... और ये इंतज़ार उम्र भर का हो जाता है ...

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