मैं उलझी हूँ सुलझाने में
उलझे से ताने-बाने में,
ये दुनिया या वो दुनिया
गुत्थी समझ न पाने में।
गुथ चुके सिरे आपस में यूँ
ओर-छोर न मिल पाए
कैसे बुन पाऊँ प्रेम चदरिया
रास्ता कोई तो दिखलाए,
दो दुनियाओं के बीच फँसी,
दुविधा में कैसी आन पड़ी,
न इस जग में रह पाने में,
न उस जग में जा पाने में।
अज्ञात खींचता धागा तो
ढीले पड़ते दुनियावी धागे
दुनिया के धागे तानूँ तो
टूटे जाते उससे नाते,
यहाँ वहाँ, इसके - उसके
गुच्छों को सुलझाने में,
उस तक जाऊँ तो जग छूटे
जग को चाहूँ तो वो रूठे,
किससे जोड़ूँ, किससे तोड़ूँ
किसको पाऊँ , किसको छोडूँ
कैसे दो जग के तार जुड़ें,
ये समझने में, समझाने में
~~~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी
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