Thursday, 22 December 2022

जाने क्यों एकाकी मैं?

 


जाने क्यों एकाकी मैं?

जीवन की इस भीड़-भाड़ में,

रेलमपेल औ भाग-दौड़ में,

कहीं बची न बाकी मैं|

जाने क्यों एकाकी मैं?

साँझ ढले जब वज़्म सजे,

प्याले दर प्याले दौर चले,

कहीं दर्द में भीगी-भीगी शायरी,

कहीं सुर-लय-ताल से ग़ज़ल सजे|

कभी रेत कभी शबनम बन बिखरे,

जज्बातों से अल्फाज़ सजे |

कहीं मय छलके, कहीं अश्क़ बहे,

हँसी, ठहाके, आँसू पीड़ा,

सब हुए शराबी बहके-बहके|

पर अपनी मधुशाला में,

मय, मीना न साक़ी मैं !

सुबह-शाम-दिन-दोपहरी,

जाने क्यों एकाकी मैं?

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शालिनी रस्तौगी

22/12/2022

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