काम की बातें ,
अक्सर कर देती हैं बोझिल ...
मन और माहौल को
तो चलो,
फिर कुछ बेकाम-बेकार सी बात करते हैं
किसी बात पर होंठ दबाकर मुस्कुराते हैं
कुछ अटपटी बातों को
खट्टी-मीठी गोली की तरह
मुँह में घुमाते हुए
चटकारे लगा खुलकर खिलखिलाते हैं...।
सारे दिन की थकन से,
बेमतलब-सी अनबन से
किसी की बात के कसैलेपन से
जो घुल गई है मुँह में कड़वाहट
चूरन-सी चटपटी बातों के चटाखे लगा
कसैलापन भुलाते हैं।
बातों के गोलगप्पों में ,
मज़ाक की चटनी लगा,
चटपटे चुटकुलों का पानी भर
आज बातों के चटोरे बन जाते हैं।
चलो दोस्त
कुछ बेकार की बातें बनाते हैं
~~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी
12/12/22
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