Thursday 22 December 2022

इल्लियाँ और तितलियाँ

 बेचैन हैं कुछ इल्लियाँ
तितलियाँ बन जाने को
कर रही हैं पुरज़ोर कोशिश
निकलने की
कैद से अपने कोकून की।
वे काट कर चोटियाँ,
लहरा रही हैं ,
आज़ादी का परचम।
गोलियाँ और गालियाँ खाकर भी
कर रही हैं आवाज़ बुलंद ।
वे लड़ रही हैं अँधेरे से,
हिजाब के पहरे से,
इल्म औ अना की रोशनी से,
जगमगाना चाहती हैं ,
अपना आसमाँ,
जिसमें उड़ सकें वे ,
अपने रंगबिरंगे पंख फैलाए,
बेख़ौफ़।
हाँ, अब तितलियाँ बन जाना चाहती हैं,
कुछ इल्लियाँ।
वहीं बेचैन हैं कुछ तितलियाँ ,
फिर से इल्लियाँ बन जाने को।
वे खुद पोत रही हैं,
जहालत और ज़िल्लत की स्याही
अपने रंगीन पंखों पर।
वे गुम हो जाना चाहती हैं फिर
ग़ुलामी के गुमनाम गलियारों में,
दफ़न हो जाना चाहती हैं
कट्टरता के मकबरों में ,
फिर तान लिए उन्होंने
हिजाब के काले शामियाने
खुले आसमानों तले,
वो फिर अपने परों को समेट,
अपने कोकून में घुस
इललियाँ बन जाना चाहती हैं ..... कुछ तितालियाँ।
~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी

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