औरत की कहानी
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एक औरत ने,
औरतों के लिए ,
एक औरत की कहानी लिखी |
कुछ आशाएँ, थोड़े सपने, कुछ बेगाने, थोड़े अपने
धड़कती छतियाँ, अकेली रतियाँ, अधूरी बतियाँ , कुछ प्रेम की पतियाँ ,
ख्वाहिशें जानी-पहचानी सी कुछ, कुछ थीं जो अनजानी लिखीं|
एक औरत ने, औरतों के लिए, एक औरत की कहानी लिखी.... कुछ बचपन के उल्लास बिखेरे,
कुछ यौवन के अनुराग उकेरे,
थोड़े प्रौढ़ हुए - से सपने, कुछ किशोर नादानी लिखी |
कभी न बीता जो बचपन, पल में बीती वो जवानी लिखी |
एक औरत ने, औरतों के लिए, एक औरत की कहानी लिखी ....
हँसते होंठो के पीछे उदासी की परत ,
पनीली आँखों के सपनों की झलक ,
लहराती लटों में रातों की स्याही
कहीं जुल्फों पर जो, चाँदी थी उतर आई ,
रंगत आबनूसी, कहीं सुनहरी – रुपहली - आसमानी लिखी |
कहीं तरुणाई की चमक , तो कहीं झुर्रियों भरी पेशानी लिखी |
एक औरत ने, औरतों के लिए, एक औरत की कहानी लिखी ......
आटे गूँधते गूँधी गई संग ख्वाहिशें,
रोटी की संग आँच पर सुंध महक उठीं चाहतें,
बुहारी लगाते बुहार दीं जो, मन से बाहर हसरतें,
ऊन से सलाइयों पर, ख़्वाबों की उतरीं बुनावटें ,
मसरूफियत का खालीपन , बेचैनियों की इत्मिनानी लिखी
जो कही नहीं थी कभी किसी से, उस बात की तर्जुमानी लिखी |
एक औरत ने, औरतों के लिए, एक औरत की कहानी लिखी ......
बखूबी निभाए जा रहे रिश्तों का खोया अपनापन,
फ़र्ज़ का निभाव करते, मन में उतरा सूनापन,
करवट बदलती रात में, मीठी नींद का ख्वाब,
अपने घर में, अपने लिए एक कोने की तलाश ,
सर्वस्व समर्पण का सुकून, सब खोने की परेशानी लिखी|
कहीं मुश्किलों की इबारतें, कहीं चैन – आसानी लिखी|
एक औरत ने, औरतों के लिए, एक औरत की कहानी लिखी ......
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शालिनी रस्तौगी
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